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( १८९४ -
१८९४
द्रव्यानुयोग-(३)
पइण्णग
प्रकीर्णक
सूत्र
सूत्र
१. अव्वोच्छित्तिनय दिट्ठया अस्थिकायादीणं एगत्त परूवणं
एगे धम्मे, एगे अधम्मे, एगे मोक्खे, एगे पुण्णे, एगे पावे, एगे आसवे,एगे संवरे।
-ठाणं.अ.१,सु.६-९ वियच्चादीणं एगत्त परूवणंएगा वियच्चा
-ठाणं. अ.१,सु.१६ एगा तक्का
-ठाणं. अ.१.सु.१९ एगा मण्णा
-ठाणं. अ.१.सु.२१ एगा विण्णू,
-ठाणं.अ.१.सु.२२ एगे छेयणे एगे भेयणे
-ठाणं. अ.१,सु.२४-२५ एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते, एगे दुक्खे जीवाणं एगभूए, एगा अहम्मपडिमा, जं से आया परिकिलेसइ। एगा धम्मपडिमा जं से आया पज्जवजाए।
___-ठाणं. अ.१, सु. २७-३० एगे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसकार परक्कमे, देवासुर-मणुयाणं तंसि-तंसि समयंसि। -ठाणं. अ.१,सु.३४ एगेणाणे,एगे दंसणे,एगे चरित्ते, -ठाणं.अ.१,सु.३५ एगे समए, एगे पएसे,
-ठाणं.अ.१,सु.३६ एगे दंडे, एगे अदंडे,
-सम. सम.१,सु.६-७ एगा सिद्धी,एगे सिद्धे,
एगे परिणिव्वाणे,एगे परिणिव्लुए। -ठाणं. अ.१, सु.३७ ३. अव्वोच्छित्ति नयदिट्ठया पावट्ठाणणामाणि
१. एगे पाणाइवाए, २. एगे मुसावाए, ३. एगे अदिण्णादाणे, ४. एगे मेहुणे, ५. एगे परिग्गहे,
६. एगे कोहे, ७. एगे माणे,
८. एगे माया, ९. एगे लोभे,
१०. एगे पेज्जे, ११. एगे दोसे,
१२. एगे कलहे, १३. एगे अभक्खाणे, १४. एगे पेसुण्णे, १५. एगे परपरिवाए, १६. एगा अरइरई, १७. एगे मायामोसे, १८. एगे मिच्छादसणसल्ले।
-ठाणं.अ.१,सु.३९(१)
१. द्रव्यार्थिक नय दृष्टि से अस्तिकाय आदि के एकत्व का
प्ररूपणधर्म (धर्मास्तिकाय) एक है, अधर्म (अधर्मास्तिकाय) एक है, मोक्ष एक है, पुण्य एक है, पाप एक है,
आश्रव एक है, संवर एक है। २. चित्तवृत्यादि के एकत्व का प्ररूपण
विशिष्ट चित्तवृत्ति एक है, तर्क एक है, मनन एक है, विद्वत्ता एक है, छेदन एक है, भेदन एक है। जो संशुद्ध यथाभूत और पात्र है, वह एक है। प्रत्येक जीव का दुःख एक है और एकभूत है। अधर्मप्रतिमा एक है, जिससे आत्मा परिक्लेश को प्राप्त होता है। धर्मप्रतिमा एक है. जिससे आत्मा पर्यवजात को प्राप्त होता है अर्थात् ज्ञान आदि की विशेष शुद्धि को प्राप्त होता है। देव-असुर और मनुष्यों के एक समय में एक ही उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार अथवा पराक्रम होता है। ज्ञान एक है, दर्शन एक है, चारित्र एक है, समय एक है, प्रदेश एक है, दण्ड एक है, अदण्ड एक है, सिद्धि एक है, सिद्ध एक है,
परिनिर्वाण एक है, परिनिर्वृत्त एक है। ३. द्रव्यार्थिक नय दृष्टि से अठारह पापस्थानों के नाम
१. प्राणातिपात एक है, २. मृषावाद एक है, ३. अदत्तादान एक है, ४. मैथुन एक है, ५. परिग्रह एक है, ६. क्रोध एक है, ७. मान एक है,
८. माया एक है, ९. लोभ एक है, १०. प्रेय (प्रेम राग) एक है, ११. द्वेष एक है,
१२. कलह एक है, १३. अभ्याख्यान एक है, १४. पैशुन्य एक है, १५. परपरिवाद एक है, १६. अरति-रति एक है, १७. मायामृषा एक है, १८. मिथ्यादर्शनशल्य एक है।
१. ठाणं.अ.९,सु.६७७