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उ. गोयमा सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओए । एवं एगिदियवज्जं जाव वैमाणिए ।
प. जीवा णं भंते ! आभिणिबोहिय-नाणपज्जवेहिं किं कङजुम्मा जाय कलि ओगा ?
उ. गोयमा ! १. ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा,
२. विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलिओया वि। एवं एगिंदियवज्जं जाव वैमाणिया ।
एवं सुयनाणपज्जवेहि वि ओहिनाणपज्जवेहि वि एवं चेव ।
णवरं - विगलिंदियाणं नत्थि ओहिनाणं । मणपञ्जवनाणं पि एवं चैव ।
वरं - जीवाणं मणुस्साण य, सेसाणं नत्थि ।
प. जीये णं भंते! केवलनाणपज्जवेहिं कि कडजुम्मे जाय कलिओए ?
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उ. गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयोए नो दावरजुम्मे, नो कलियोए ।
एवं मस्से वि एवं सिद्धे वि।
प. जीवा णं भंते! केवलनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मा जाव कलिओगा ?
उ. गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा |
?
नो. तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलिओगा । एवं मणुस्सा वि
एवं सिद्धा वि। - विया. स. २५, उ. ४, सु. ६२-७४ १०. अन्नाणपज्जवेहिं पडुच्च जीव चउवीसदंडएसु कडजुम्माइ परूवणं
प. जीवे णं भंते! मइअन्नाणपज्जवेहि किं कडजुम्मे जाव कलिओए ?
उ. गोयमा ! जहा आभिणिबोहियनाणपञ्जवेहिं तहेब दो दण्डगा ।
एवं सुयअन्नाणपज्जवेहि वि ।
एवं विभंगनाणपज्जवेहि वि।
- विया. स. २५, उ. ४, सु. ७५ ७७ ११. दंसण पज्जवेहिं पडुच्च जीव चउवीसदंडएसु कडजुम्माइ परूवणं
चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण ओहिदंसणपञ्जवेहि वि एवं चैव।
द्रव्यानुयोग - (३)
उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है यावत् कदाचित् कल्योज है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
प्र. भंते ! क्या (अनेक) जीव आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं यावत् कल्पोज हैं ?
उ. गौतम ! १. ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्पोज हैं।
२. विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए।
इसी प्रकार श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी कहना चाहिए। अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी इसी प्रकार कहना चाहिए।
विशेष- विकलेन्द्रियों में अवधिज्ञान नहीं होता।
मनः पर्यवज्ञान के पर्यायों के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए।
विशेष-जीव और मनुष्यों में ही मनः पर्यवज्ञान होता है, शेष जीवों में नहीं पाया जाता।
प्र. भन्ते ! क्या (एक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है यावत् कल्योज है?
उ. गौतम ! वह कृतयुग्म है, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है।
इसी प्रकार मनुष्य के लिए भी जानना चाहिए।
इसी प्रकार सिद्ध के लिए भी कहना चाहिए।
प्र. भन्ते ! क्या (अनेक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं यावत् कल्योज है ?
उ. गौतम! ओघादेश से और विधानादेश से वे कृतयुग्म है, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं हैं।
इसी प्रकार मनुष्यों के लिए भी समझना चाहिए। इसी प्रकार सिद्धों के लिए भी कहना चाहिए।
१०. अज्ञान पर्यायों की अपेक्षा से जीव-चौबीस दण्डकों में कृतयुग्मादि का प्ररूपण -
प्र. भन्ते ! क्या (एक) जीव मतिअज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है यावत् कल्बोज है?
उ. गौतम ! आभिनिबोधिज्ञान के पर्यायों के समान यहाँ भी (एक वचन बहुवचन की अपेक्षा) दो दण्डक कहने चाहिए। इसी प्रकार श्रुतअज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी कहना चाहिए।
इसी प्रकार विभंगज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी कहना चाहिए।
११. दर्शन पर्यायों की अपेक्षा जीव - चौबीस दण्डकों में कृतयुग्मादि
का प्ररूपण
चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के पर्यायों के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए।