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पुद्गल अध्ययन
उ. गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्म
पएसोगाढा, नो तेयोगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो
कलियोगपसोगाढा। प. वट्टा णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव
कलियोगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा,
नो तेयोगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलियोगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि, तेयोगपएसोगाढा
वि,
नो दावरजुम्मपएसोगाढा, कलियोगपएसोगाढा वि।
प. तंसा णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव
कलियोगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा,
नो तेयोगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलियोगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि, तेयोगपएसोगाढा वि, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, कलियोगपएसोगाढा वि।
चउरंसा जहा वट्टा।
१७८७ उ. गौतम ! वे ओघादेश से तथा विधानादेश से कृतयुग्म
प्रदेशावगाढ़ हैं, . किन्तु त्र्योज-प्रदेशावगाढ़, द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ और
कल्योज-प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। प्र. भंते ! (अनेक) वृत्त-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं
यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं? उ. गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं,
किन्तु त्र्योज-प्रदेशावगाढ़, द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ और कल्योज-प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ भी हैं, ज्योजप्रदेशावगाढ़ भी हैं, कदाचित् कल्योज प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु द्वापरयुग्म
प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं, प्र. भंते !(अनेक) त्रिकोण-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं
यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ़ हैं? उ. गौतम ! वे ओघादेश के कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ हैं
किन्तु त्र्योज प्रदेशावगाढ़, द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ़ और कल्योज-प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ भी हैं, ज्योज प्रदेशावगाढ़ भी हैं, कल्योज प्रदेशावगाढ़ भी हैं किन्तु द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। चतुरन-संस्थानों के विषय में वृत्त-संस्थानों के समान कहना
चाहिए। प्र. भंते ! (अनेक) आयत-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं
यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं? उ. गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं।
किन्तु त्र्योज प्रदेशावगाढ़, द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ़ और कल्योज-प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ भी हैं यावत् कल्योज
प्रदेशावगाढ़ भी हैं। ३७. एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा पांच संस्थानों की कृतयुग्मादि
समयस्थिति का प्ररूपणप्र. भंते ! परिमण्डल-संस्थान क्या कृतयुग्म समय की स्थिति वाला
है, त्र्योज समय की स्थिति वाला है, द्वापरयुग्म-समय की
स्थिति वाला है या कल्योज-समय की स्थिति वाला है? उ. गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है यावत्
कल्योज समय की स्थिति वाला है।
इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान क्या कृतयुग्म-समय की
स्थिति वाले हैं, त्र्योज समय की स्थिति वाले हैं, द्वापरयुग्म समय की स्थिति वाले हैं या कल्योज समय की स्थिति वाले हैं ? गौतम ! वे ओघादेश से-कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं। विधानादेश से-कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले भी हैं यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं। इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए।
प. आयता णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव
कलियोगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं-कडजुम्मपएसोगाढा,
नो तेयोगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलिओगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि जाव
कलियोगपएसोगाढा वि। -विया. स. २५, उ. ३, सु.५१-६० ३७. एगत्त-पुहत्तेहिं पंचसु संठाणेसु कडजुम्माइ समयट्ठिई
परूवणंप. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मसमयट्ठिईए
तेयोगसमयट्ठिईए, दावरजुम्मसमयट्ठिईए,
कलियोगसमयट्ठिईए? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मसमयट्टिईए जाव सिय
कलियोगसमयट्ठिईए।
एवं जाव आयते। प. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मसमयट्टिईया,
तेयोगसमयट्ठिईया, दावरजुम्मसमयट्ठिईया,
कलियोगसमयट्ठिईया? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयट्ठिईया जाव
सिय कलियोगसमयट्ठिईया। विहाणीदेसेणं कडजुम्मसमयट्ठिईया वि जाव कलियोगसमयट्ठिईया वि। एवं जाव आयता। -विया. स. २५, उ.३, सु.६१-६४