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१८३८ उ. गोयमा ! एवं चेव।
एवं जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं। प. दं.१. नेरइयाणं भंते ! अणुसेढिं गई पवत्तइ, विसेढिं गई
पवत्तइ? उ. गोयमा ! अणुसेढिं गई पवत्तइ, नो विसेढिं गई पवत्तइ। द.२-२४.एवं जाव वेमाणियाणं।
-विया.स.२५, उ.३, सु. १०९-११३ ७६. परमाणुपोग्गल खंधाणं सअड्ढ-समज्झ-सपएसाइ परूवणं-
द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए।
इसी प्रकार अनन्त-प्रदेशिक स्कन्ध-पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! नैरयिकों की अनुश्रेणी गति होती है या विश्रेणी गति
होती है? उ. गौतम ! अनुश्रेणी गति होती है, विश्रेणी गति नहीं होती है।
इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए।
प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे, समझे, सपएसे?
उदाहु अणड्ढे, अमज्झे,अपएसे? उ. गोयमा ! अणड्ढे, अमज्झे,अपएसे,
नो सअड्ढे, नो समझे, नो सपएसे। प. दुपएसिएणं भन्ते ! खंधे किं सअड्ढे, समझे, सपएसे,
उदाहु अणड्ढे, अमज्झे, अपएसे? उ. गोयमा !सअड्ढे,अमज्झे,सपएसे, __णो अणड्ढे,णो समझे,णो अपएसे। प. तिपएसिएणं भन्ते ! खंधे किं सअड्ढे, समज्झे, सपएसे,
उदाहु अणड्ढे,अमझे,अपएसे? उ. गोयमा ! अणड्ढे, समज्झे,सपएसे,
नो सअड्ढे, नो अमझे,नो अपएसे। जहा दुपएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा,
जे विसमा ते जहा तिपएसिओतहा भाणियव्वा। .
७६. परमाणु-पुद्गल स्कन्धों का सार्ध-समध्य और सप्रदेशादि का
प्ररूपणप्र. भंते ! क्या परमाणु-पुद्गल सार्ध, समध्य और सप्रदेश है,
अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है? उ. गौतम ! (परमाणु-पुद्गल) अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है, ___किन्तु सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश नहीं है। प्र. भंते ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश है,
अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है? उ. गौतम ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) सार्ध, अमध्य और सप्रदेश है,
किन्तु अनर्ध, समध्य और अप्रदेश नहीं है। प्र. भंते ! क्या त्रिप्रदेशी स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश है,
अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है? उ. गौतम ! (त्रिप्रदेशी स्कन्ध) अनर्ध, समध्य और सप्रदेश है,
किन्तु सार्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं है। जिस प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में सार्ध आदि बताए, उसी प्रकार समसंख्या (४,६,८,१०) वाले स्कन्धों के लिए कहना चाहिए। विषम संख्या (५,७,९) वाले स्कन्धों के लिए त्रिप्रदेशी स्कन्ध
के समान कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश
हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है? उ. गौतम ! वह कदाचित् सार्ध, अमध्य और सप्रदेश है,
कदाचित् अनर्ध, समध्य और सप्रदेश है। जिस प्रकार संख्यातप्रदेशी स्कन्ध के लिए कहा उसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के लिए भी
कहना चाहिए। ७७. परमाणु पुद्गल स्कन्धों में सार्द्ध-अनर्द्धत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल सार्द्ध (सम आधे भाग-सहित) है या
अनर्द्ध (सम आधेभाग से रहित) है? उ. गौतम ! वह सार्द्ध नहीं है, अनर्द्ध है। प्र. भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध सार्द्ध है या अनर्द्ध है? उ. गौतम ! वह सार्द्ध है, अनर्द्ध नहीं है। त्रिप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणु-पुद्गल के समान है। चतुष्प्रदेशी स्कन्ध का कथन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान है। पंचप्रदेशी स्कन्ध का कथन त्रिप्रदेशी स्कन्ध के समान है। षट्प्रदेशी स्कन्ध का कथन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान है।
प. संखेज्जपदेसिए णं भन्ते ! खंधे किं सअड्ढे, समज्झे,
सपएसे, उदाहुअणड्ढे अमज्झे अपएसे? उ. गोयमा ! सिय सअड्ढे,अमज्झे,सपएसे, सिय अणड्ढे,समज्झे,सपएसे, जहा संखेज्जपएसिओ तहा असंखेज्जपएसिओ वि, अणंतपएसिओ विभाणियव्यो।
-विया. स.५, उ.७, सु.९-१० ७७. परमाणुपोग्गल खंधेसु सड्ढ-अणड्ढत्त परूवणं
प. परमाणु पोग्गले णं भन्ते ! किं सड्ढे अणड्ढे ?
उ. गोयमा !नो सड्ढे, अणड्ढे। प. दुपएसिए णं भन्ते ! किं सड्ढे, अणड्ढे ? उ. गोयमा ! सड्ढे, नो अणड्ढे । तिपएसिए जहा परमाणु पोग्गले, चउप्पएसिए जहा दुपएसिए, पंचपएसिए जहा तिपएसिए, छप्पएसिए जहा दुपएसिए