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उ. गोयमा ! पाणाणुकंपाए, भूयाणुकंपाए, जीवाणुकंपाए,
सत्ताणुकंपाए, बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए, असोयणयाए, अजूरणयाए, अतिप्पणयाए, अपिट्टणयाए, अपरियावणयाए सायावेयणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं सायावेयणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगबंधे।
प. अस्सायावेयणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते !
कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! परदुक्खणयाए, परसोयणयाए,
परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, परपरितावणयाए बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणयाए जाव परियावणयाए अस्साया वेयणिज्जकम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं अस्साया
वेयणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. ४. मोहणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स
कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! तिव्वकोहयाए, तिव्वमाणयाए, तिव्वमायाए, तिव्वलोभाए, तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए, मोहणिज्जकम्मासरीरप्पयोग नामाए
कम्मस्स उदएणं मोहणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. ५. नेरइयाउय-कम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स
कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! महारंभयाए, महापरिग्गहयाए, पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं, नेरइयाउय कम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं
नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. तिरिक्खजोणियाउयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते !
कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! माइल्लयाए, नियडिल्लयाए, अलियवयणेणं
कूडतूल-कूडमाणेणं तिरिक्खजोणियाउय कम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तिरिक्खजोणियाउय कम्मासरीरप्पयोगबंधे।
द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! प्राणियों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा
करने से,जीवों पर अनुकम्पा करने से, सत्वों पर अनुकम्पा करने से, बहुत प्राणी यावत् सत्वों को दुःख न देने से, शोक न कराने से, खेद-खिन्न न कराने से, पीड़ा न पहुँचाने से, न पीटने से, परिताप उत्पन्न न कराने से तथा सातावेदनीय कार्मण शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से
सातावेदनीय कार्मण शरीर प्रयोगबन्ध होता है। प्र. भन्ते ! असातावेदनीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म
के उदय से होता है? उ. गौतम ! दूसरे जीवों को दुःख पहुँचाने से, उन्हें शोक उत्पन्न
कराने से, चिन्तित करने से,पीड़ा देने से,पीटने से, परिताप उत्पन्न कराने से, बहुत से प्राणी यावत् सत्वों को दुःख देने से यावत् उन्हें परिताप उत्पन्न करने से तथा असातावेदनीय-कार्मण शरीरप्रयोग बन्ध नामकर्म के उदय
से असातावेदनीय कार्मण शरीर प्रयोग बन्ध होता है। प्र. ४. भन्ते ! मोहनीय-कार्मण-शरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के
उदय से होता है? उ. गौतम ! तीव्र क्रोध से, तीव्र मान से, तीव्र माया से, तीव्र
लोभ से, तीव्र दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्रमोहनीय से तथा मोहनीय-कार्मणशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से
मोहनीय कार्मण-शरीर प्रयोग बन्ध होता है। प्र. ५. भन्ते ! नैरयिकायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म
के उदय से होता है? उ. गौतम ! महारम्भ करने से, महापरिग्रह सें, पंचेन्द्रिय जीवों
का वध करने से और माँसाहार करने से तथा नैरयिकायुष्य कार्मणशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से नैरयिकायुष्य
कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है। प्र. भन्ते ! तिर्यञ्चयोनिक-आयुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध
किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! माया करने से, निकृति (कपट) करने से, मिथ्या
बोलने से, खोटा तौल और खोटा माप करने से तथा तिर्यञ्चयोनिक-आयुष्य-कार्मणशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से, तिर्यञ्चयोनिक-आयुष्य-कार्मण शरीर प्रयोगबन्ध
होता है। प्र. भन्ते ! मनुष्यायुष्य कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के
उदय से होता है? उ. गौतम ! प्रकृति की भद्रता से, प्रकृति की विनीतता (नम्रता)
से, दयालुता से, अमत्सरभाव से तथा मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से मनुष्यायुष्य
कार्मण-शरीर प्रयोग बन्ध होता है। प्र. भन्ते ! देवायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय
से होता है? उ. गौतम ! सराग-संयम से, संयमासंयम (देशविरति) से, बाल
(अज्ञानपूर्वक) तपस्या करने से तथा अकामनिर्जरा से एवं देवायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से देवायुष्य कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है।
प. मणुस्साउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स
कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! पगइभद्दयाए, पगइविणीययाए,
साणुक्कोसयाए, अमच्छरिययाए, मणुस्साउय कम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं मणुस्साउय
कम्मासरीरप्पयोग बंधे। प. देवाउयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स
उदएणं? उ. गोयमा ! सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं,
बालतवोकम्मेणं, अकामनिज्जराए देवाउयकम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं देवाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे।