________________
पुद्गल अध्ययन
३. अणाहारिया आहारिज्जस्समाणा पोग्गला
परिणया? ४. अणाहारिया अणाहारिज्जस्समाणा पोग्गला
परिणया? उ. गोयमा ! नेरइयाणं १.पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया,
पा
२. आहारिया आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणया
परिणमंति य, ३. अणाहारिया आहारिज्जस्समाणा पोग्गला नो
परिणया परिणमिस्संति,
४. अणाहारिया अणाहारिज्जस्समाणा पोग्गला नो
परिणया नो परिणमिस्संति।
जहा परिणया तहा चिया, उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिण्णा।
गाहा-परिणय-चिया-उवचिया-उदीरिया-वेइया य निज्जिण्णा।
एक्केक्कम्मि पदम्मी चउव्विहा पोग्गला होंति॥ प. नेरइया णं भंते ! कइविहा पोग्गला भिज्जति?
- १८९१ ) ३. अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं, जो पुद्गल आहार के
रूप में ग्रहण किये जाएँगे वे परिणत हुए? ४. जो पुद्गल अनाहारित हैं और भविष्य में भी
अनाहारित होंगे वे परिणत हुए? उ. गौतम ! १. नारकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल
परिणत हुए, २. आहार किये हुए और आहार किये जाते हुए पुद्गल
परिणत हुए और परिणत होते हैं, ३. अनाहारित पुद्गल परिणत नहीं हुए तथा भविष्य में जो
पुद्गल आहार रूप में ग्रहण किये जाएँगे वे परिणत
होंगे। ४. जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया गया और आहार
नहीं किया जाएगा वे परिणत भी नहीं हुए और परिणत
भी नहीं होंगे। जिस प्रकार परिणत के लिए कहा उसी प्रकार चय, उपचय, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा को प्राप्त हुए के लिए भी कहना चाहिए। गाथार्थ-परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण इन प्रत्येक पद में चार-चार प्रकार के पुद्गल
सम्बन्धी प्रश्नोत्तर जानने चाहिए। प्र. भन्ते ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे
जाते हैं? उ. गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे
जाते हैं, यथा
१. अणु (सूक्ष्म) २. बादर (स्थूल)। प्र. भन्ते ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये
जाते हैं ? उ. गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के
पुद्गलों का चय करते हैं, यथा१. अणु और
२. बादर। इसी प्रकार उपचय भी समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! नारक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा
करते हैं? उ. गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की
उदीरणा करते हैं, यथा१. अणु और
२. बादर। इसी प्रकार वेदते हैं, निर्जरा करते हैं। अपवर्तन को प्राप्त हुए, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं और अपवर्तन को प्राप्त करेंगे। संक्रमण किया, संक्रमण करते हैं और संक्रमण करेंगे। निधत्त हुए, निधत्त होते हैं और निधत्त होंगे। निकाचित हुए, निकाचित होते हैं और निकाचित होंगे। इन सब पदों में भी कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा (अणु और बादर) पुद्गलों का कथन करना चाहिए।
उ. गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला
भिज्जति,तं जहा
१. अणु चेव, २. बायरा चेव। प. नेरइया णं भंते ! कइविहा पोग्गला चिज्जंति?
उ. गोयमा ! आहारदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति, तं जहा१. अणु चेव, २. बायरा चेव।
एवं उवचिज्जंति। प. नेरइया णं भंते ! कझविहे पोग्गले उदीरेंति?
उ. गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहे पोग्गले
उदीरेंति,तं जहा१. अणु चेव, २. बायरे चेव। एवं वेदेति, निज्जरेंति। ओयटिंसु, ओयटेंति, ओयट्टिस्संति।
संकामिंसु, संकाति, संकामिस्संति। निहत्तिंसु, निहतेंति, निहत्तिस्संति। निकायंसु, निकाएंति, निकाइस्संति। सव्वेसु वि कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च।