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पुद्गल अध्ययन
११८. वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधस्स वित्थरओ परूवणं
प. वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. एगिंदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे य,
२. पंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य। प. भंते ! जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं
वाउक्काइयएगिंदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे
अवाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे? उ. गोयमा ! वाउक्काइय एगिदिय वेउब्विय सरीरप्पयोग
बंधे,णे अवाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरप्पयोग बंधे। एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्यो जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमाणियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधेय।
प. वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स
उदएणं? उ. गोयमा ! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जाव आउयं वा
लद्धिं वा पडुच्च वेउव्वियसरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स
उदएणं वेउवियसरीरप्पयोगबंधे। प. वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते !
कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! वीरिय-सजोग-सदव्वयाए जाव आउयं वा
लद्धिं वा पडुच्च वाउक्काइय एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं वाउक्काइय
एगिंदिय वेउव्विय सरीरप्पयोगबंधे। प. रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदियवेउव्विय
सरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जाव आउयं वा
पडुच्च रयणप्पभापुढवि पंचिंदिय वेउव्विय सरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं रयणप्पभापुढवि पंचिंदिय वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधे।
एवं जाव अहेसत्तमाए। प. तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं
भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जाव आउयं वा
लद्धिं वा पडुच्च तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधे।
१८७९ ११८. वैक्रिय शरीरप्रयोग बंध का विस्तार से प्ररूपण
प्र. भंते ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा
गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार कहा गया है, यथा
१. एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध,
२. पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध। प्र. भंते ! यदि एकेन्द्रिय-वैक्रिय शरीर प्रयोगबन्ध है, तो क्या
वायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध है या
अवायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रिय शरीर प्रयोगबन्ध है? उ. गौतम ! वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध है
और अवायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध नहीं है। इस प्रकार के अमिलाप द्वारा (प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवें) अवगाहना संस्थानपद में वैक्रियशरीर के जिस प्रकार भेद कहे गए हैं, उसी प्रकार यहां भी “पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध, अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर
प्रयोग बन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से
होता है? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्व्यता यावत् आयुष्य
और लब्धि से तथा वैक्रियशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से
वैक्रियशरीरप्रयोग बन्ध होता है। प्र. भंते ! वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध किस
कर्म के उदय से होता हैं? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता यावत् आयुष्य
और लब्धि से तथा वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय
शरीरप्रयोग बन्ध होता है। प्र. भंते ! रलप्रभापृथ्वीनैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर
प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता यावत् आयुष्य से
तथा रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध होता है।
इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध किस.
कर्म के उदय से होता है ? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्व्यता यावत् आयुष्य
और लब्धि से तथा तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध होता है।