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१८६९
पुद्गल अध्ययन उ. जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे तिविहे
पण्णत्ते,तं जहा
१. सचित्ते,२.अचित्ते,३.मीसए। प. से किं तं सचित्तदव्वखंधे? उ. सचित्तदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते,तं जहा१. हयखंधे,
२. गयखंधे, ३. किन्नरखंधे, ४. किंपुरिसखंधे, ५. महोरगखंधे, ६. उसभखंधे।
से तं सचित्त दव्वखंधे। प. से किं तं अचित्तदव्वखंधे? उ. अचित्तदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते,तं जहा
दुपएसिए खंधे, तिपएसिए खंधे जाव दसपएसिए खंधे, संखेज्जपएसिए खंधे, असंखेज्जपएसिए खंधे,
अणंतपएसिए खंधे,से तं अचित्तदव्वखंधे। प. से किं तं मीसदव्वखंधे? उ. मीसदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते,तं जहा
सेणाए अग्गिमखंधे, सेणाए मज्झिमखंधे, सेणाए पच्छिमखंधे,सेत्तं मीसदव्वखंधे। अहवा जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते,तं जहा१. कसिणखंधे, २. अकसिणखंधे,
३. अणेगदवियखंधे। प. से किं तं कसिणखंधे? उ. कसिणखंधे से चेव हयक्खंधे गयक्खंधे जाव
उसभखंधे, से तं कसिणखंधे। प. से किं तं अकसिणखंधे? उ. अकसिणखंधे से चेव दुपएसियाई खंधे जाव
अणंतपएसिए खंधे।
से तं अकसिणखंधे। प. से किं तं अणेगदवियखंधे? उ. अणेगदविय खंधे तस्सेव देसे अवचिए तस्सेव देसे
उवचिए सेत्तं अणेगदवियखंधे।
उ. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध तीन प्रकार
का कहा गया है, यथा
१. सचित्त, २. अचित्त,३. मिश्र। प्र. सचित्तद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. सचित्तद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा
१. हय (अश्व) स्कन्ध, २. गज (हाथी) स्कन्ध, ३. किन्नरस्कन्ध, ४. किंपुरुषस्कन्ध, ५. महोरगस्कन्ध, ६. वृषभ (बैल) स्कन्ध
यह सचित्तद्रव्य स्कन्ध का स्वरूप है। प्र. अचित्तद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. अचित्तद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा
द्विप्रदेशी स्कन्ध, त्रिप्रदेशी स्कन्ध यावत् दसप्रदेशी स्कन्ध, संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, अनन्तप्रदेशी
स्कन्ध, यह अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। प्र. मिश्रद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. मिश्रद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा-'
सेना का अग्रिम स्कन्ध, सेना का मध्य स्कन्ध, सेना का अंतिम स्कन्ध, यह मिश्रद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। अथवा ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार हैं, यथा१. कृत्स्नस्कन्ध, २. अकृत्स्नस्कन्ध,
३. अनेकद्रव्यस्कन्ध। प्र. कृत्स्नस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. हयस्कन्ध, गजस्कन्ध यावत् वृषभस्कन्ध जो पूर्व में कहे हैं
वही कृत्स्नस्कन्ध है। यही कृत्स्नस्कन्ध का स्वरूप है। प्र. अकृत्स्नस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. अकृत्स्नस्कन्ध पूर्व में कहे गये द्विप्रदेशी स्कन्ध
यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं।
यह अकृत्स्नस्कन्ध का स्वरूप है। प्र. अनेकद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. एक देश अपचित और एक देश उपचित भाग मिलकर
उनका जो समुदाय बनता है, वह अनेकद्रव्यस्कन्ध है। यह अनेक द्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध का कथन हुआ। यह नोआगम द्रव्यस्कन्ध का वर्णन पूर्ण हुआ।
यह द्रव्य स्कन्ध का वर्णन पूर्ण हुआ। प्र. भावस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. भावस्कन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. आगमभाव स्कन्ध, २.नो आगमभाव स्कन्ध। प्र. आगमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. स्कन्ध पद के अर्थ का उपयोग युक्त ज्ञाता आगमभाव
से तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे। से तं नोआगमओ दव्वखंधे।
से तंदव्वखंधे। प. से किं तं भाव खंधे? उ. भाव खंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. आगमओ य, २. नोआगमओ य। प. से किं तं आगमओ भाव खंधे? उ. आगमओ भाव खंधे जाणए उवउत्ते।
सेतं आगमओ भावखंधे। प. से किं तं नो आगमओ भावखंधे?
यह आगमस्कन्ध का स्वरूप है। प्र. नोआगमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है?