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१८७०
द्रव्यानुयोग-(३)
उ. परस्पर-संबंधित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय
के मिलने से निष्पन्न आवश्यकश्रुतस्कन्ध कहलाता है। यह नो आगमभावस्कन्ध का स्वरूप है।
उ. नो आगमओ भावखंधे एएसिं चेव सामाइयमाइयाणं
छहं अज्झयणाणं समुदयसमिइसमागमेणं निष्फन्ने आवस्सयसुयक्खंधे भाव खंधे त्ति लब्भइ, से तं नो आगमओभावखंधे। से तं भावखंधे। तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति,तं जहागाहा-गण काय निकाय खंध वग्ग रासी पुंजे य पिंड नियरे या संघाय आकुल समूह भावखंधस्स पज्जाया। से तं खंधे।
-अणु.सु.५२-७२ १०५. सद्दस्स भेयप्पभेया
दसविहे सद्दे पण्णत्ते,तं जहा१. णीहारि, २. पिंडिमे, ३. लुक्खे, ४. भिण्णे, ५. जज्जरिए इय, ६. दीहे, ७. रहस्से, ८. पुहत्ते य,
९. काकणी, १०. खिंखिणिस्सरे।
-ठाणं. अ.१०,सु.७०५ दुविहे सद्दे पण्णत्ते,तंजहा१. भासासद्दे चेव, २. नोभासासद्दे चेव। भासासद्दे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. अक्खरसंबद्धे चेव, २. नो अक्खरसंबद्ध चेव। नो भासासद्दे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. आउज्जसद्दे चेव, २. नो आउज्जसद्दे चेव। आउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. तते चेव,
२.वितते चेव, तते दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. घणे चेव,
२. झुसिरे चेव, एवं वितते वि। नो आउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. भूसणसद्दे चेव, २.नो भूसणसद्दे चेव। नो भूसणस दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. तालसद्दे चेव, २. लत्तियासद्दे चेव।
-ठाणं.अ.२, उ.२, सु.७३(१-८) १०६. सदुष्पत्ति निमित्ताणि
दोहिं ठाणेहि सदुप्पाए सिया,तं जहा१. साहन्नंताणं चेव पुग्गलाणं सदुप्पाए सिया,
यह भावस्कन्ध का अध्ययन हुआ। उस भावस्कन्ध के विविध घोषों एवं व्यंजनों वाले एकार्थक (पर्यायवाची) नाम इस प्रकार हैं, यथा(गाथार्थ) गण, काय, निकाय, स्कन्ध, वर्ग, राशि, पुँज, पिंड, निकर, संघात,आकुल और समूह ये सभी भावस्कन्ध
के पर्याय हैं। यह स्कन्ध का कथन पूर्ण हुआ। १०५. शब्दों के भेद-प्रभेद
शब्द दस प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. निर्हारी-घोषवान् शब्द जैसे-घंटे का, २. पिण्डिम-घोषवर्जित शब्द, जैसे-नगाड़े का, ३. रुक्ष कर्कशशब्द-जैसे कौवे का, ४. भिन्न-वस्तु के टूटने से होने वाला शब्द, ५. जर्जरित-जैसे-तार वाले बाजे का शब्द, ६. दीर्घ-जो दूर तक सुनाई दे सके, जैसे-मेघ का शब्द, ७. ह्रस्व-सूक्ष्म शब्द जैसे-वीणा का, ८. पृथक्त्व-अनेक बाजों का संयुक्त शब्द,
९. काकणी-सूक्ष्मकण्ठों की गीतध्वनि, १०. किंकिणी स्वर-घूघरों की ध्वनि।
शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. भाषा शब्द,
२. नो भाषा शब्द। भाषा शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. अक्षर संबद्ध-वर्णात्मक, २. नो अक्षर संबद्ध। नो भाषा शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. आतोद्य (वाद्य) शब्द, २. नो आतोद्य शब्द (वाद्यरहित)। आतोद्य शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. तत,
२.वितत। तत शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. घन,
२. झुषिर। इसी प्रकार वितत शब्द भी दो प्रकार का कहा गया है। नो आतोद्य शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. भूषणशब्द,
२. नो भूषणशब्द। नो भूषणशब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. तालशब्द,
२. लत्तिकशब्द।
१०६. शब्दों की उत्पत्ति के निमित्त
दो कारणों से शब्द की उत्पत्ति होती है, यथा१. पुद्गलों का संघात (एकत्रित) होने पर शब्द की उत्पत्ति
होती है,