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पुद्गल अध्ययन
१८४५
उ. गोयमा ! तइय नवमेहिं फुसइ,
दुपएसिओ दुपदेसियं फुसमाणो पढम-तइय-सत्तमणवमेहिं फुसइ, दुपदेसिओ तिपदेसियं फुसमाणो आदिल्लएहि य पच्छिल्लएहि य तिहिं फुसइ, मज्झिमएहिं तिहिं वि पडिसेहेयव्वं।
दुपदेसिओ जहा तिपदेसियं फुसाविओ एवं फुसावेयव्यो जाव अणंतपएसियं फुसइ।
प. तिपएसिएणं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं
१. देसेणं देसं फुसइ जाव
९. सव्वेणं सव्वं फुसइ? उ. गोयमा ! तइय-छट्ठ-णवमेहिं फुसइ।
तिपएसिओ दुपएसियं फुसमाणो पढमएणं, तइएणं, चउत्थ-छट्ठ-सत्तम-णवमेहिं फुसइ।
तिपएसिओ तिपएसियं फुसमाणो सव्वेसु वि ठाणेसु फुसइ। जहा-तिपएसिओ तिपदेसियं फुसाविओ एवं तिपदेसिओ-जाव-अणंतपएसिएणं संजोएयव्यो। जहा तिपएसिओ एवं जाव-अणंतपएसिओ भाणियव्यो।
-विया.स.५, उ.७,सु.११-१३
उ. गौतम ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल को) तीसरे और
नौवें (एक देश से सर्व को तथा सर्व से सर्व को) विकल्प से स्पर्श करता है। द्विप्रदेशीस्कन्ध-द्विप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है। द्विप्रदेशीस्कन्ध-त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ आदि के तीन (१-३) तथा अन्तिम तीन (७-९) विकल्पों से स्पर्श करता है। इसमें मध्य के तीन (चतुर्थ, पंचम और षष्ठ) विकल्पों को छोड़ देना चाहिए। जिस प्रकार द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श का आलापक कहा उसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त स्पर्श
का आलापक कहना चाहिए। प्र. भंते ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता
हुआ क्या१. एक देश से एक देश को स्पर्श करता है यावत्
९. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है? उ. गौतम ! (त्रिप्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल को) तीसरे, छठे
और नौवें (एकदेश से सर्व को, बहुत देशों से सर्व को और सर्व से सर्व को) विकल्प से स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशी स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशीस्कन्ध त्रिप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ सभी (१-९) विकल्पों से स्पर्श करता है। जिस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श का आलापक कहा उसी प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध द्वारा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त के स्पर्श आलापक कहने चाहिए। जिस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के परमाणु पुद्गल आदि से स्पर्श के सम्बन्ध में कहा उसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध
द्वारा परमाणु पुद्गल स्पर्श करने के लिए कहना चाहिए। ८०. परमाणु पुद्गल और स्कन्धों का वायुकाय से स्पर्शना का
प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट (व्याप्त) है या
वायुकाय परमाणुपुद्गल से स्पृष्ट है ? उ. गौतम ! परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट है किन्तु वायुकाय
परमाणु परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट नहीं है। प्र. भंते ! द्विप्रदेशिक-स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है या वायुकाय
द्विप्रदेशिक स्कन्ध से स्पृष्ट है? उ. गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है किन्तु
वायुकाय द्विप्रदेशिक स्कन्ध से स्पृष्ट नहीं है।
इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है या वायुकाय
अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से स्पृष्ट है ? उ. गौतम ! अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध से कदाचित् स्पृष्ट है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं है।
८०. परमाणु पोग्गलाणं खंधाण य वाउकाएणं फुसणा परूवणं
प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! वाउकाएणं फुडे, वाउकाए वा
परमाणुपोग्गलेणं फुडे ? उ. गोयमा ! परमाणु पोग्गले वाउकाएणं फुडे, नो वाउकाए
परमाणु पोग्गलेणं फुडे। प. दुपएसिए णं भंते ! खंधे वाउकाएणं फुडे, वाउकाए वा,
दुपएसिएणं खंधेणं फुडे ? उ. गोयमा ! दुपएसिए खंधे वाउकाएणं फुडे, नो वाउकाए
दुपएसिएणं खंधेणं फुडे।
एवं जाव असंखेज्जपएसिए। प. अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे वाउकाएणं फुडे, वाउकाए
वा, अणंतपएसिएणं खंधेणं.फुडे? उ. गोयमा ! अणंतपएसिए खंधे वाउकाएणं फुडे,
वाउकाए अणंतपएसिएणं खंधेणं सिय फुडे, सिय नो फुडे।
-विया.स.१८, उ.१०.सु.४-७