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पुद्गल अध्ययन
मणपोग्गलपरियट्टा सव्वेसु पंचिंदिएसु एगुत्तरिया।
विगलिंदिएसु नत्थि। वइपोग्गलपरियट्टा एवं चेव,
णवरं-एगिदिएसु नत्थि भाणियव्वा,
आणापाणुपोग्गलपरियट्टा सव्वत्थ एगुत्तरिया जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते।
प. दं. १. नेरइयाणं भंते ! नेरइयत्ते केवइया
ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! नत्थि एक्को वि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. नत्थि एक्को वि।
दं.२-११.एवं जाव थणियकुमारत्ते।
प. दं. १२. नेरइयाणं भंते ! पुढविकाइयत्ते केवइया __ ओरालिय पोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. अणंता।
दं.१३-२१.एवं जाव मणुस्सत्ते। दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा नेरइयत्ते।
१८३५ मनःपुद्गल परिवर्त समस्त पंचेन्द्रिय जीवों में एक से लेकर उत्तरोत्तर अनन्त पर्यन्त कहने चाहिए। किन्तु विकलेन्द्रियों में मनःपुद्गलपरिवर्त नहीं होता है। इसी प्रकार (मनःपुद्गलपरिवर्त के समान) वचन-पुद्गलपरिवर्त के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। विशेष-वह (वचन पुद्गल-परिवर्त) एकेन्द्रिय जीवों में नहीं कहना चाहिए। आन-प्राण (श्वासोच्छ्वास) पुद्गल-परिवर्त सर्वत्र वैमानिक के वैमानिक भव पर्यन्त एक से लेकर अनन्त पर्यन्त जानना
चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! नैरयिक भव में अनेक नैरयिक जीवों के
अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है। प्र. भविष्य में कितने होंगे? उ. एक भी नहीं होगा।
दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार भव पर्यन्त कहना
चाहिए। प्र. दं. १२. भंते ! पृथ्वीकायिक भव में अनेक नैरयिक जीवों के ___अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भविष्य में कितने होंगे? उ. अनन्त होंगे।
दं. १३-२१. इसी प्रकार मनुष्य भव पर्यन्त कहना चाहिए। दं. २२-२४. अनेक नैरयिकों के नैरयिक भव के समान वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक भव के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार अनेक वैमानिकों के वैमानिक भव पर्यन्त का कथन करना चाहिए। इसी प्रकार सातों पुद्गल परिवों का कथन करना चाहिए। जिसके जो पुद्गल परिवर्त हो उसके अतीत और भविष्यकाल के अनन्त कहने चाहिए। जिसके नहीं हों वहाँ अतीत और अनागत दोनों नहीं
कहने चाहिए यावत्प्र. भंते ! वैमानिक भव में अनेक वैमानिकों के अतीतकाल में _ कितने आन-प्राण पुद्गल परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भविष्य में कितने होंगे?
उ. अनन्त होंगे। ७०. औदारिकादि पुद्गल परिवर्तों के नामकरण के कारणों का
प्ररूपणप्र. भंते ! किस कारण से औदारिक पुद्गल-परिवर्त, औदारिक
पुद्गल-परिवर्त कहा जाता है? उ. गौतम ! औदारिक शरीर में रहते हुए जीव ने औदारिक शरीर
योग्य द्रव्यों को औदारिक शरीर के रूप में ग्रहण किये,
एवं जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते।
एवं सत्त वि पोग्गलपरियट्टा भाणियव्वा। जत्थ अत्थि तत्थ अतीता वि पुरेक्खडा वि अणंता भाणियव्वा। जत्थ नत्थि तत्थ दो वि नत्थि भाणियव्वा जाव
प. वेमाणिया णं भंते ! वेमाणियत्ते केवइया आणापाणु
पोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. अणंता।
-विया. स. १२, उ.४, सु. २८-४६ ७०. ओरालिय पोग्गलपरियाणं नामकरणस्सकारण परूवणं-
प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'ओरालियपोग्गलपरियट्टे,ओरालियपोग्गलपरियट्टे? उ. गोयमा ! जं णं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं
ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए