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पुद्गल अध्ययन
प. दं. १. एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवइया ओरालियपोग्गलपरिया अतीता ?
उ. गोयमा ! अणंता ।
प. केवइया पुरेक्खडा ?
उ. कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि ।
जस्सऽत्थि जहणणेण एक्को वा, दो वा तिण्णि या उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अनंता वा । प. दं. २. एगमेगस्स णं भंते असुरकुमारस्स केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता पुरेक्खडा य ?
उ. गोयमा ! एवं चेय
दं. ३ २४. एवं जाव वेमाणियस्स ।
प. दं. १. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवइया चेडव्वियपोग्गलपरियट्टा अतीता पुरेक्खडा य ? उ. गोयमा ! एवं जहेब ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव वेव्वयपोग्गलपरियट्टा वि भाणियव्वा ।
दं. २-२४. एवं जाव वेमाणियस्स आणापाणुपोग्गल परियट्टा । एए एगत्तिया सत्त दंडगा भवति ।
प. दं. १ रइयाणं भंते! केवइया
ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ?
उ. गोयमा अनंता।
प. केवइया पुरेक्खडा ?
उ. गोयमा ! अणंता ।
दं. २-२४. एवं जाव वेमाणियाणं ।
एवं वेव्वियपोग्गलपरियट्टा वि एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टा वेमाणियाणं ।
एवं एए पोहतिया सत्त चउबीसइदंडगा भवति ।
- विया. स. १२, उ. ४, सु. १८-२७ ६९. चउवीसदड़याणं चउवीसदंडएसु पोग्गल परियट्टाणं परूवणं
प. बं. १. एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स नेरइयत्ते केयइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ?
उ. गोयमा ! नत्थि एक्को वि।
प. केवइया पुरेक्खडा ?
उ. नत्थि एक्को वि।
प. दं. २. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता पुरेक्खडा व ?
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प्र. दं. १ भंते ! प्रत्येक नैरयिक के अतीत काल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं ?
उ. गौतम ! (वे) अनन्त हुए हैं।
प्र. प्रत्येक नैरधिक के (भविष्यकालीन) पुद्गल परिवर्त कितने होंगे ?
उ. किसी (नैरयिक) के होंगे. किसी के नहीं होंगे।
जिस (नैरयिक) के होंगे, उसके जघन्य एक दो या तीन होंगे और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे।
प्र. दं. २. भंते! प्रत्येक असुरकुमार के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं और भविष्यकाल में कितने होंगे ?
उ. गौतम ! इसी प्रकार पूर्ववत् जानना चाहिए।
दं. ३ २४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त पुद्गल परिवर्त का कथन करना चाहिए।
प्र. दं. १. भंते ! प्रत्येक नारक के अतीतकाल में कितने वैक्रिय पुद्गल परिवर्त हुए हैं और भविष्यकाल में कितने होंगे ? उ. गौतम जिस प्रकार औदारिक पुद्गल परिवर्त के वि
में कहा, उसी प्रकार वैक्रिय पुद्गल परिवर्त के विषय में भी कहना चाहिए।
दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यंत आन-प्राण पुद्गल परिवर्त तक कहना चाहिए।
इसी प्रकार एक नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त प्रत्येक जीव की अपेक्षा सात दण्डक होते हैं।
प्र. दं. १. भंते ! अतीतकाल में नैरयिकों के कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं?
उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं।
प्र. भविष्यकाल में कितने पुद्गल परिवर्त होंगे ?
उ. गौतम ! (वे भी) अनन्त होंगे।
दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वैक्रियपुद्गल परिवर्तों के विषय में कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त आनप्राण- पुद्गल परिवर्त कहना चाहिए।
इस प्रकार ये बहुवचन की अपेक्षा चौवीस दंडकों के सात आलापक कहने चाहिए।
६९. चौवीस दंडकों का चौवीस दंडकों में पुद्गल परिवर्तों का
प्ररूपण
प्र. दं. १. भंते ! नैरयिक अवस्था में प्रत्येक नैरयिक जीव के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं?
उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है।
प्र. भविष्यकाल में कितने (औदारिक पुद्गल-परिवर्त) होंगे ? उ. एक भी नहीं होगा।
प्र. दं. २. भंते ! असुरकुमार अवस्था में प्रत्येक नैरयिक जीव के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल-परिवर्त हुए हैं और भविष्य में कितने होंगे ?