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एवं दुपएणं भेएणंजाव थणियकुमारा,
एवं पिसाया जाव गंधव्या, चंदा जाव ताराविमाणा, सोहम्मोकप्पो जाव अच्चुओ। हेट्ठिम-हेट्ठिम गेवेज्जकप्पातीय जाव उवरिम उवरिम गवेज्ज कप्पातीय, विजयअणुत्तरोववाइयकप्पाईयग जाव सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयग एक्केक्केण दुयओ भेओ भाणियव्यो जावजे पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयगवेमाणियदेवपंचिंदियपओगपरिणया, ते वेउव्वियतेयाकम्मासरीरप्पओगपरिणया, चउत्थो दण्डओजे अपज्जत्ता सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपओगपरिणया,
ते फासिंदियपओगपरिणया। जे पज्जत्ता सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपओगपरिणया,
ते फासिंदियपओगपरिणया, जे अपज्जत्ता बायरपुढविक्काइयएगिंदियपओगपरिणया, ते फासिंदियपओगपरिणया, एवं पज्जत्तगा वि,
द्रव्यानुयोग-(३) इसी प्रकार दो-दो भेदों के क्रम से स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार पिशाच यावत् गंधर्व, चंद्र यावत् ताराविमान, सौधर्मकल्प यावत् अच्युतकल्प, अधस्तन अधस्तन ग्रैवेयक कल्पातीत यावत् उपरिम उपरिम ग्रैवेयक कल्पातीत, विजय अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत प्रत्येक (पर्याप्त-अपर्याप्त) के दो-दो भेद कहने चाहिए यावत्जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे पुद्गल वैक्रिय तैजस् और कार्मण शरीर प्रयोग परिणत हैं। चतुर्थ दण्डकजो पुद्गल अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। जो पुद्गल पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। जो पुद्गल अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। इसी प्रकार पर्याप्त (बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय के पुद्गलों) के सम्बन्ध में जानना चाहिए। इसी प्रकार चार-चार भेदों से वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों तक के प्रयोग परिणत पुद्गलों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। जो पुद्गल अपर्याप्त द्वीन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। जो पुद्गल पर्याप्त द्वीन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे भी रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-एक एक इन्द्रिय बढ़ानी चाहिए। जो पुद्गल अपर्याप्त रलप्रभापृथ्वी नारक पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं। इसी प्रकार पर्याप्त (रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक के प्रयोग परिणत पुद्गलों) के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार (सभी नैरयिक) तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देवों के यावत् जो पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं, वे श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं।
एवं चउक्कएणं भेएणं जाव वण्णस्सइकाइयएगिदियपओगपरिणया। जे अपज्जत्ता बेइंदियपओगपरिणया, ते जिभिंदियफासिंदियपओगपरिणया, जे पज्जत्ता बेइंदियपओगपरिणया, ते जिभिंदियफासिंदियपओगपरिणया। एवं जाव चउरिंदिया, णवर-एक्केक्कं इंदियं वड्ढेयव्वं । जे अपज्जत्तारयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदिय-पओगपरिणया, ते सोइंदिय-चक्खिंदिय-घाणिंदिय-जिमिंदिय-फासिंदियपओगपरिणया, एवं पज्जत्तगावि,
एवं सव्वे भाणियव्वा, तिरिक्ख जोणिय, मणुस्स, देवा जाव जे पज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइय कप्पाईयगवेमाणियदेवपंचिंदियपओगपरिणया, ते सोइंदियचक्विंदिय-घाणिंदिय-जिभिंदिय-फासिंदयपओग परिणया,