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पुद्गल अध्ययन ४४. णव दंडगेहिं मीसापरिणयपोग्गलाणं परूवणं
४६. नव दण्डकों द्वारा मिश्र परिणत पुद्गलों का प्ररूपणप. मीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता?
प्र. भंते ! मिश्र परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
उ. गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. एगिंदियमीसापरिणया जाव
१. एकेन्द्रिय मिश्र परिणत यावत् ५. पंचिंदियमीसापरिणया।
५. पंचेन्द्रिय मिश्र परिणत। प. एगिदियमीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा प्र. भंते ! एकेन्द्रिय मिश्र परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे पण्णत्ता?
गये हैं? उ. गोयमा ! एवं जहा पओगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रयोग परिणत पुद्गलों के नौ दंडक कहे एवं मीसापरिणएहि वि नव दंडगा भाणियव्या, तहेव
हैं उसी प्रकार मिश्र परिणत पुद्गलों के भी नौ दंडक सव्वं निरवसेसं।
कहने चाहिए। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए। णवरं-अभिलावो मीसापरिणया भाणियव्वाओ,
विशेष-(प्रयोग परिणत के स्थान में) “मिश्र परिणत" ऐसा
पाठ कहना चाहिए। सेसंतं चेव जाव
शेष सब उसी प्रकार जानना चाहिए यावत्जे पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईय
जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वेमाणियदेव-पंचेंदिय-वेउव्विय तेयाकम्मासरीर-सोइंदिय
वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय तैजस और कार्मण शरीर तथा जाव फासिंदिय पओगपरिणया ते वण्णओ
श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है वे वर्ण से कृष्ण कालवण्णपरिणया विजाव आययसंठाणपरिणया वि।
वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। -विया. स.८, उ. १, सु.४६-४७ ४५. वीससापरिणयपोग्गलाणं भेय-प्पभेया
४५. विश्रसा परिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेदप. वीससापरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता?
प्र. भंते ! विश्रसा परिणत (स्वभाव से परिणत) पुद्गल कितने
प्रकार के कहे गए हैं? उ. गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
उ. गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. वण्णपरिणया,२.गंधपरिणया, ३. रसपरिणया,
१. वर्ण परिणत, २. गंध परिणत, ३. रस परिणत, ४. फासपरिणया,५.संठाणपरिणया।
४. स्पर्श परिणत, ५. संस्थान परिणत। जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो वर्ण परिणत पुद्गल हैं-वे पाँच प्रकार के कहे
गये हैं, यथा१. कालवण्णपरिणया जाव ५.सुक्किल्लवण्णपरिणया।
१. कृष्ण वर्ण रूप परिणत यावत् ५.शुक्लवर्ण रूप परिणत। जे गंधपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो गंध परिणत हैं-वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सुब्भिगंधपरिणया वि, २. दुब्भिगंधपरिणया वि।
१. सुगंध परिणत, २. दुर्गन्ध परिणत। जे रसपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो रस परिणत पुद्गल हैं वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तित्तरसपरिणया जाव ५. महुररसपरिणया।
१. तिक्त रस परिणत यावत् ५. मधुर रस परिणत। जे फासपारेणया ते अट्ठविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो स्पर्श परिणत पुद्गल हैं वे आठ प्रकार के कहे
गए हैं, यथा१. कक्खडफासपरिणया जाव ८.लुक्खफासपरिणया,
१. कर्कश स्पर्श परिणत यावत् ८. रूक्ष स्पर्श परिणत। जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो संस्थान परिणत पुद्गल हैं वे पाँच प्रकार के कहे
गये हैं, यथा१. परिमंडलसंठाणपरिणया जाव आययसंठाणपरिणया, १. परिमण्डल संस्थान परिणत यावत् ५. आयत संस्थान
परिणत। एवं जहा पण्णवणाए तहेव निरवसेसं जाव
इसी प्रकार जैसे प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में जो वर्णन किया
गया है वही सब जानना चाहिए यावत्जे संठाणओ आयय संठाण परिणया
जो पुद्गल संस्थान से आयत संस्थान परिणत हैं, ते वण्णओ कालवण्ण परिणया वि जाव
वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् स्पर्श से रुक्ष लुक्खफासपरिणया वि। -विया. स. ८, उ. १, सु. ४८
स्पर्श परिणत भी हैं पर्यन्त जानना चाहिए। १. (क) वर्ण गंध आदि परिणत पुद्गलों का विस्तृत वर्णन अजीव अध्ययन में देखें- (ख) पण्ण.प.१,सु.६, (ग) जीवा.पडि.१.सु.५