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णवरं-देव-नेरइयाणं अपज्जत्तगाणं, सेसाणं पज्जत्तगाणं तहेव जाव नो पज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइयदेवपंचिंदिय-वेउव्वियमीसासरीर-कायप्पओगपरिणए,
अपज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइयदेव-पंचिंदिय
वेउव्वियमीसासरीर-कायप्पओगपरिणए। प. भंते ! जइ आहारगसरीर-कायप्पओगपरिणए,
किंमणुस्साहारगसरीर-कायप्पओगपरिणए,
अमणुस्साहारगसरीर-कायप्पओगपरिणए ? उ. गोयमा ! एवं जहा ओगाहणसंठाण आहारगसरीर
भणियं तहा इह वि भाणियव्वं जाव इड्ढिपत्तपमत्तसंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभू मग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्स-आहारगसरीर-कायप्पओगपरिणए, नो अणिड्ढिपत्त-पमत्तसंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्त-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्स-आहारग
सरीर-कायप्पओगपरिणए। प. भंते !जइ आहारगमीसासरीर-कायप्पओगपरिणए,
किं मणुस्साहारगमीसासरीर-कायप्पओगपरिणए,
द्रव्यानुयोग-(३) विशेष-अपर्याप्त देव नारकों और शेष सब के पर्याप्तकों को वैक्रिय मिश्रशरीरकाय प्रयोग परिणत होता है उसी प्रकार यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय मिश्र शरीरकाय प्रयोग परिणत नहीं होता है, किन्तु अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव पंचेन्द्रिय
वैक्रिय मिश्र शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य आहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता
है तो क्यामनुष्य आहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है या
अमनुष्य आहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है ? उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र अवगाहना संस्थान पद
में आहारक शरीर के लिए कहा उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत् आहारक लब्धियुक्त प्रमत्त संयत सम्यक् दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वाला कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य आहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है, किन्तु ऋद्धि (आहारकलब्धि) अप्राप्त प्रमत्त संयत सम्यक् दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला कर्मभूमिक गर्भज
मनुष्य आहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत नहीं होता है। प्र. भंते ! यदि वह एक द्रव्य आहारकमिश्र शरीरकाय प्रयोग
परिणत होता है तो क्या मनुष्य आहारक मिश्र शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है या
अमनुष्य आहारक मिश्र शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है ? उ. गौतम ! जिस प्रकार आहारक शरीर के संबंध में कहा उसी
प्रकार आहारक मिश्र शरीर के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! यदि वह एक द्रव्य कार्मण शरीरकाय प्रयोग परिणत
होता है तो क्या-एकेन्द्रिय कार्मण शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है यावत्
पंचेन्द्रिय कार्मणशरीरकाय प्रयोग परिणत होता है? उ. गौतम ! एक द्रव्य एकेन्द्रिय कार्मण शरीरकाय प्रयोग परिणत
होता है। जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के अवगाहना संस्थान पद में कार्मण शरीर के भेद कहे हैं उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत्पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय कार्मणशरीरकाय प्रयोग परिणत होता है,
अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक पंचेन्द्रिय कार्मण शरीरकाय प्रयोग होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है तो क्या
मनोमिश्रपरिणत होता है, वचनमिश्र परिणत होता है,
कायमिश्रपरिणत होता है? उ. गौतम ! वह मनोमिश्र परिणत भी होता है, वचनमिश्रपरिणत
भी होता है और कायमिश्र परिणत भी होता है।
अमणुस्साहारगमीसासरीर-कायप्पओगपरिणए? उ. गोयमा ! एवं जहा आहारगं तहेव मीसगं पि निरवसेसं
भाणियव्वं। प. भंते ! जइ कम्मासरीर-कायप्पओगपरिणए,
किं-एगिदियकम्मासरीर-कायप्पओगपरिणए जाव
पंचिंदियकम्मासरीर-कायप्पओग परिणए? उ. गोयमा ! एगिदिय-कम्मासरीर-कायप्पओगपरिणए,
एवं जहा ओगाहणा संठाणे कम्मगस्स भेओ तहेव इहा विजावपज्जत्त-सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयवेमाणियदेवपंचिंदियकम्मासरीरकायप्पओगपरिणए वा, अपज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइयकप्पाईय
वेमाणियदेवपंचिंदियकम्मासरीर-कायप्पओगपरिणए वा। प. भंते ! जइ मीसापरिणए किं मणमीसापरिणए,
वइमीसापरिणए, कायमीसापरिणए?
उ. गोयमा ! मणमीसापरिणए वा, वइमीसापरिणए वा,
कायमीसापरिणए वा,
१. पण्ण. पद २१, सु.१५५३/९-१०