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पुद्गल अध्ययन
जहा खेतओ एवं कालओ भावओ।
जे दव्यओ सपदेसे से खेत्तओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे,
एवं कालओ भावओ वि।
जे खेत्ताओ सपदेसे से दव्बओ नियमा सपदेसे,
कालओ भयणाए, भावओ भयणाए.
जहा दव्बओ तहा कालओ भावओ थि
प. एएसि णं भंते ! पोग्गलाणं दव्यादेसेण खेत्तादेसेणं कालादेसेणं भावादेसेणं सपदेसाण य, अपदेसाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाब विसेसाहिया था ?
उ. नारयपुत्ता ! १. सव्वत्योवा पोग्गला भावादेसेणं अपदेसा, २. कालादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा,
३. दव्वादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा,
४. खेत्तादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा, ५. खेत्तावेसेणं चैव सपदेसा असंखेज्जगुणा, ६. देव्यादेसेणं सपदेसा विसेसाहिया,
७. कालादेसेणं सपदेसा विसेसाहिया,
८. भावादेसेण सपदेसा विसेसाहिया।
तए ण से नारयपुते अणगारें नियंठिपुत्त अणगारं बंद नमंस, नियंठिपुत्तं अणगारं वंदित्ता णमंसित्ता एयमट्ठ सम्म विणणं भुज्जो - भुज्जो खामेइ,
खामित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । -विया. स. ५, उ. ८, सु. १-९
५४. चवीसदंडएस अत्ताणत्ताइ पोग्गलाणं परूवणं
प. दं. १ नेरयाणं भंते किं अत्ता पोग्गला, अणता पोग्गला ?
उ. गोयमा ! नो अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्गला ।
प. दं. २. असुरकुमाराणं भंते! किं अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्गला ?
उ. गोयमा अत्ता पोग्गला णो अणत्ता पोग्गला।
दं . ३-११. एवं जाव थणियकुमाराणं ।
प. दं. १२. पुढविकाइयाणं भंते ! किं अत्ता पोग्गला, अणत्ता पोग्ला ?
उ. गोयमा ! अत्ता वि पोग्गला, अणत्ता वि पोग्गला ।
दं. १३-२१. एवं जाय मणुरसाणं ।
६. २२-२४ वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाणं- जहा असुरकुमाराणं ।
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जिस प्रकार क्षेत्र कहा, उसी प्रकार काल से और भाव से भी भजना कहनी चाहिए।
जो पुद्गल द्रव्य से सप्रदेश है, वह क्षेत्र से कदाचित् सप्रदेश और अप्रदेश हैं,
इसी प्रकार काल से और भाव से भी (सप्रदेश और अप्रदेश) जान लेना चाहिए।
जो पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश हैं, वे द्रव्य से नियमतः सप्रदेश हैं, किन्तु काल से और भाव से भजना जाननी चाहिए।
जैसा द्रव्य की अपेक्षा कहा, वैसा ही काल की अपेक्षा और भाव की अपेक्षा भी कहना चाहिए।
प्र. भंते! (निर्ग्रन्धी पुत्र) द्रव्यादेश से क्षेत्रादेश से कालादेश से और भावादेश से प्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
उ. नारदपुत्र १. भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं। २. ( उनसे ) कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, ३. ( उनसे ) द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, ४. ( उनसे) क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, ५. (उनसे) क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, ६. ( उनसे) द्रव्यादेश से सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, ७. ( उनसे ) कालादेश से सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, ८. ( उनसे) भावादेश से सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक है।
यह सुनकर नारदपुत्र अणगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अणगार को वन्दन नमस्कार किया और वन्दन नमस्कार करके उनसे सविनय बार-बार क्षमायाचना की।
इसी प्रकार क्षमायाचना करके वे नारदपुत्र अणगार संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे ।
५४. चौवीस दण्डकों में आत्त-अनात्त आदि पुद्गलों का प्ररूपणप्र. दं. १. भंते! नैरयिकों के आत्त (सुखकारी) पुद्गल होते हैं या अनात्त (दुःखकारी) पुद्गल होते हैं ?
उ. गौतम ! उनके आत्त पुद्गल नहीं होते, किन्तु अनात्त पुद्गल होते हैं।
प्र. दं. २. भंते ! असुरकुमारों के आत्त पुद्गल होते हैं या अनात्त पुद्गल होते हैं?
उ. गौतम ! उनके आत्त पुद्गल होते हैं, अनात्त पुद्गल नहीं होते हैं।
६. ३.११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. ६. १२. भते पृथ्वीकायिक जीवों के आत्त पुद्गल होते हैं या अनात्त पुद्गल होते हैं ?
उ. गौतम ! उनके आत्त पुद्गल भी होते हैं और अनात्त पुद्गल भी होते हैं।
६. १३.२१. इसी प्रकार (अकाधिक जीवों से) मनुष्यों पर्यन्त जानना चाहिए।
दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के
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पुद्गलों के लिए असुरकुमारों के समान कहना चाहिए।