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जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइयएगिंदियपओगपरिणया एवं
चेव,
एवं जहाणुपुव्वीए नेयव्वं जावजे पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयदेवा पंचेंदियपओगपरिणया, ते वन्नओ कालवनपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, सत्तमो दंडओजे अपज्जता सुहुमपुढविकाइयएगिंदियओरालियतेयाकम्मासरीरप्पओगपरिणया, ते वनओ कालवन्त्रपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, जे पज्जत्ता-सुहुमपुढविकाइय एवं चेव, .
द्रव्यानुयोग-(३) जो पुद्गल पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे भी इसी प्रकार हैं। इसी प्रकार सभी क्रमपूर्वक जानना चाहिए यावत्जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। सातवाँ दण्डकजो पुद्गल अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक तैजस् और कार्मण शरीर प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के लिए भी इसी प्रकार जानना
चाहिए।
एवं जहाऽऽणुपुव्वीए नेयव्वं जस्स जइ सरीराणि जाव
जे पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयगवेमाणियदेवपंचिंदियवेउब्वियतेयाकम्मासरीरप्पओगपरिणया,
ते वन्नओ कालवण्णपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, अट्ठमो दंडओजे अपज्जत्तासुहमपुढविकाइयएगिंदियफासिंदियपओगपरिणया, ते वन्नओ कालवण्णपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइय एवं चेव।
एवं जहा आणुपुब्बीए जस्स जइ इंदियाणि तस्स तइ भाणियव्वाणि जावजे पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयगवेमाणियदेवपंचिंदियसोइंदिय जाव फासिंदियपओगपरिणया, ते वण्णओ कालवण्णपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, नवमो दण्डओजे अपज्जत्तासुहमपुढविकाइयएगिंदियओरालियतेयाकम्मासरीरफासिंदियपओगपरिणया, ते वण्णओ कालवण्णपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि, जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइय एवं चेव।
इसी प्रकार यथानुक्रम से जिनके जितने शरीर हैं उनके उतने ही कहने चाहिए यावत्जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय, तैजस् और कार्मण शरीर प्रयोग परिणत हैं। वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। आठवाँ दण्डकजो पुद्गल अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इसी प्रकार यथानुक्रम से जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उसके उतनी इन्द्रियाँ कहनी चाहिए यावत्जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयतसंस्थान परिणत भी हैं। नवमा दण्डकजो पुद्गल अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक तैजस् और कार्मण शरीर तथा स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इसी प्रकार यथानुक्रम से सब जानने चाहिए। जिसके जितने शरीर और इन्द्रियाँ हों उसके वे ही कहने चाहिए यावत्जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय तैजस और कार्मण शरीर तथा श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। इस प्रकार ये नौ दंडक कहे गये हैं।
एवं जहा आणुपुव्वीए जस्स जइ सरीराणि इंदियाणि य तस्स तइ भाणियव्वाणि जावजे पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय कप्पाईयग वेमाणिय देव पंचिंदिय-वेउव्वियतेयाकम्मासरीरसोइंदिय जाव फासिंदियपओगपरिणया, ते वण्णओ कालवण्णपरिणया विजाव आययसंठाणपरिणया वि। एवं एए नव दंडगा भणिया। -विया. स.८, उ. १, सु. ४-४५