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उ. गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय
दावरजुम्मा, सिय कलियोगा।
विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलिओगा।
एवंजाव आयता। प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे पएसट्ठयाए किं कडजुम्मे,
तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मे, सिय तेयोगे, सिय दावरजुम्मे,
सिय कलियोगे।
एवं जाव आयते। प. परिमंडला णं भंते ! संठाणा पएसट्ठयाए किं कडजुम्मा,
तेयोगा, दावरजुम्मा कलिओगा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय
कलियोगा। विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि, तेयोगा वि, दावरजुम्मा वि, कलियोगा वि।
एवं जाव आयता। -विया. स. २५, उ. ३, सु. ४२-५० ३६. एगत्त-पुहत्तेहिं पंचसु संठाणेसु जहाजोगं कडजुम्माइ
पएसोगाढत्त परूवणंप. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं
१. कडजुम्मपएसोगाढे, २. तेयोगपएसोगाढे,
३. दावरजुम्मपएसोगाढे, ४. कलियोगपएसोगाढे? उ. गोयमा ! कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोगपएसोगाढे, नो
दावरजुम्मपएसोगाढे, नो कलियोगपएसोगाढे।
द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! ओघादेश (सामान्य) से कदाचित् कृतयुग्म हैं,
कदाचित् त्र्योज हैं, कदाचित् द्वापरयुग्म हैं और कदाचित् कल्योज हैं। विधानादेश से प्रत्येक की अपेक्षा कृतयुग्म नहीं हैं त्र्योज नहीं है, द्वापरयुग्म नहीं है किन्तु कल्योज हैं।
इसी प्रकार आयत-संस्थानों पर्यंत जानना चाहिए। प्र. भंते ! परिमण्डल-संस्थान क्या प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्म है,
त्र्योज है, द्वापरयुग्म है या कल्योज है? उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है, कदाचित् त्र्योज है,
कदाचित् द्वापरयुग्म है और कदाचित् कल्योज है।
इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान क्या प्रदेश की अपेक्षा
कृतयुग्म हैं, त्र्योज हैं, द्वापर युग्म हैं या कल्योज हैं ? उ. गौतम ! ओघादेश से-वे कदाचित् कृतयुग्म हैं,
यावत् कदाचित् कल्योज हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं,त्र्योज भी हैं, द्वापरयुग्म भी हैं और कल्योज भी हैं।
इसी प्रकार आयत-संस्थानों पर्यन्त जानना चाहिए। ३६. एकत्व-बहुत्व से पांच संस्थानों में यथायोग्य कृतयुग्मादि
प्रदेशावगाढत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! परिमण्डल-संस्थान क्या
१. कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, २. त्र्योज प्रदेशावगाढ़ है,
३. द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ़ है, ४. कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है ? उ. गौतम ! वह कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु योज
प्रदेशावगाढ, द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ और कल्योज
प्रदेशावगाढ़ नहीं है। प्र. भंते ! वृत्त-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है यावत्
कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है? उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, कदाचित्
त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ है और कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है
किन्तु द्वापर युग्म-प्रदेशावगाढ़ नहीं है। प्र. भंते ! त्रिकोण संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है यावत्
कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है? उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, कदाचित्
योज-प्रदेशावगाढ़ है और कदाचित् द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़
है, किन्तु कल्योज प्रदेशावगाढ़ नहीं है। प्र. भंते ! चतुष्कोण संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है यावत्
कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है? उ. गौतम ! जिस प्रकार वृत्त-संस्थान के विषय में कहा है उसी
प्रकार चतुरन-संस्थान के विषय में भी जानना चाहिए। प्र. भंते ! आयत-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है यावत्
कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है? उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है यावत्
कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है। प्र. भंते ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़
हैं यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं ?
प. वट्टे णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव
कलियोगपएसोगाढे? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे, सिय तेयोग
पएसोगाढे, नो दावरजुम्मपदेसोगाढे, सिय कलियोग
पएसोगाढे। प. तंसे णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव
कलियोगपएसोगाढे? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे, सियं तेयोग
पएसोगाढे, सिय दावरजुम्मपएसोगाढे, नो
कलियोगपएसोगाढे। प. चउरंसे णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव
कलियोगपएसोगाढे? उ. गोयमा !जहा वट्टे तहा चतुरंसे वि।
प. आयते णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव
कलियोगपएसोगाढे? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय
कलियोगपएसोगाढे। प. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव
कलियोगपएसोगाढा?