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३८. पंचसु संठाणेसु वण्ण-गंध-रस- फास पज्जवेहिं कडजुम्माइ परुवर्ण
प. परिमंडले णं भंते । संठाणे कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे जाय कलियोगे ?
उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे। एवं नीलवण्णपज्जवेहि वि।
एवं पंचहिं वण्णेहिं, दोहिं गंधेहिं, पंचहिं रसेहिं, अट्ठहिं फासेहिं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं ।
- विया. स. २५, उ. ३, सु. ६५-६७
३९. पोग्गलाणं संघायाइ कारण परूवणंदोहिं ठाणेहिं पोग्गला साहन्नति, तं जहा
१. सयं वा पोग्गला साहन्नंति,
२. परेण या पोग्गला साहन्नति, दोहिं ठाणेहिं पोग्गला भिज्जंति, तं जहा१ सयं वा पोग्गला भिज्जति,
२. परेण वा पोग्गला भिज्जंति,
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दोहिं ठाणेहिं पोग्गला परिपडति तं जहा१. सर्व वा पोग्गला परिपडति,
२. परेण वा पोग्गला परिपडंति, एवं परिसहति विसति ।
४०. परमाणु पोग्गलाणं संघायस्स भेयस्स य कज्ज परूवणंरायगिहे जाब एवं व्यासी
- ठाणं अ. ३, उ. ३, सु. ७४
प. दो भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति, एगयओ साहण्णित्ता किं भवइ ?
उ. गोयमा ! दुप्पएसिए खंधे भवइ,
से भिज्जमाणे दुहा कज्जइ
१. एगयओ परमाणुपोग्गले,
२. एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ ।
प. तिनि भंते ! परमाणु पोग्गला एगयओ साहनंति, एगयो साहण्णित्ता किं भवइ ?
उ. गोयमा ! तिपएसिए खधे भवइ,
से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि कन्नड़, दुहा कज्जमाणे
एगयओ परमाणु पोगले,
एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ, तिहा कजमाणे
तिष्णि परमाणुपोग्गला भवति ।
प. चत्तारि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति एगयओ साहण्णिता कि भवइ ?
उ. गोयमा ! चउपसिए खंधे भवइ,
से भिज्जमाणे दुहा वि, तिहा थि, चउहा वि कज्जइ, दुहा कज्जमाणे
द्रव्यानुयोग- ( ३ )
३८. पांच-संस्थानों का वर्ण- गन्ध-रस और स्पर्श पर्यायों के कृतयुग्मादि का प्ररूपण
प्र. भंते ! परिमण्डल- संस्थान कृष्ण वर्ण के पर्यायों से क्या कृतयुग्म हैं या कल्पोज है?
उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है यावत् कदाचित् कल्योज है। इसी प्रकार नील वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा भी कहना चाहिए। इसी प्रकार पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और रुक्ष स्पर्श पर्याय पर्यन्त आठ स्पर्शो के लिए कहना चाहिए।
३९. पुद्गलों के संघात आदि के कारणों का प्ररूपणदो स्थानों से पुद्गल एकत्रित होते हैं, यथा१. अपने स्वभाव से पुद्गल एकत्रित होते हैं। २. दूसरे के निमित्त से पुद्गल एकत्रित होते हैं। दो स्थानों से पुद्गलों का भेदन होता है, यथा
१. अपने स्वभाव से पुद्गलों का भेदन होता है। २. दूसरे के निमित्त से पुद्गलों का भेदन होता है।
दो स्थानों से पुद्गल नीचे गिरते हैं, यथा
१. अपने स्वभाव से पुद्गल नीचे गिरते हैं।
२. दूसरे के निमित्त से पुद्गल नीचे गिरते हैं।
इसी प्रकार दो-दो कारणों से पुद्गल परिसटित होते हैं और विध्वंस (नष्ट) होते हैं।
४०. परमाणु- पुद्गलों के संघात और भेदों के कार्यों का प्ररूपण
राजगृह नगर में (श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ) यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा
प्र. भंते! दो परमाणु पुद्गल एक साथ मिलते हैं और एक साथ मिलने पर क्या होता है ?
उ. गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध बनता है।
उसका भेदन होने पर दो विभाग होते हैं
१. एक ओर एक परमाणु पुद्गल, २. दूसरी ओर एक परमाणु पुद्गल होता है।
प्र. भंते! तीन परमाणु पुद्गल एक साथ मिलते हैं और एक साथ मिलने पर क्या होता है ?
उ. गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध बनता है।
उसका भेदन होने पर दो या तीन विभाग होते हैं।
दो विभाग किये जाने पर
एक ओर एक परमाणु पुद्गल,
एक ओर एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है।
तीन विभाग किये जाने पर
तीन परमाणु पुद्गल होते हैं।
प्र. भंते ! चार परमाणु पुद्गल एक साथ मिलते हैं और एक साथ मिलने पर क्या होता है ?
उ. गौतम ! चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध बनता है.
उसका भेदन होने पर दो, तीन या चार विभाग होते हैं। दो विभाग किये जाने पर