________________
पुद्गल अध्ययन
एवं जाव आयते ।
- पण्ण. प. १०, सु. ७९२-७९६
३१. सत्तसु नरयपुढवीसु सोहम्माइकप्पेसु ईसिपब्भाराए य पुढवीए परिमंडलाइ संठाणाणं अनंततं
प. इमीसे णं भंते! रयणयभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ?
उ. गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ।
प. बट्टा णं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता ?
उ. गोयमा ! एवं चैव ।
एवं जाव आयता ।
प. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए परिमंडला जाव आयता संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अनंता ?
उ. गोयमा ! एवं चेव ।
एवं जाव असत्तमाए ।
प. सोहम्मे णं भंते! कप्पे परिमंडला जाव आयता संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ?
उ. गोयमा ! एवं चेव ।
एवं जाय अच्चुए।
प. गेविज्जविमाणाणं भंते! परिमंडला जाब आयता संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ?
उ. गोयमा ! एवं चैव ।
एवं अणुतरविमाणेषु ।
एवं ईसिपब्भाराए वि । - विया. स. २५, उ. ३, सु. ११-२१ ३२. पंचसु परिमंडलाईसु जवमज्झेसु संठाणेसु परोप्परं अनंतत्तं
प. जत्थ णं भंते! एगे परिमंडले संठाणे जवमज्झे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता ?
उ. गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता । प. जत्थ णं भंते! एगे परिमंडले संठाणे जवमज्झे तत्थ वट्टा संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ?
उ. गोयमा ! एवं चेव,
एवं जाव आयता ।
प. जत्थ णं भंते! एगे वट्टे संठाणे जवमज्झे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अनंता ?
उ. गोयमा ! एवं चैव ।
एवं जाव आयता ।
प. जत्थ णं भंते ! एगे वट्टे संठाणे जवमज्झे तत्थ वटा संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अनंता ?
उ. गोयमा ! एवं चेव ।
एवं जाव आयता ।
१७८१
इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी आयतसंस्थान पर्यन्त प्रदेशावगाढ के विषय में कहना चाहिए।
३१. सात नरक पृथ्वियों सौधर्मादि कल्पों और ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी में परिमण्डलादि संस्थानों का अनन्तत्व
प्र. भंते इस रत्नप्रभापृथ्वी में परिमण्डल संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं। प्र. भंते! (रलप्रभापृथ्वी में) वृत्त संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उ. गौतम पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार ( रत्नप्रभा पृथ्वी में) आयत संस्थानों पर्यन्त समझना चाहिए।
प्र. भंते ! शर्कराप्रभापृथ्वी में परिमण्डल यावत् आयत संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उ. गौतम ! पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त संस्थान अनन्त समझने चाहिए।
प्र. भंते! सौधर्मकल्प में परिमण्डल यावत् आयत संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उ. गौतम ! पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार अच्युतकल्प पर्यन्त अनन्त कहने चाहिए ।
प्र. भंते! ग्रैवेयक विमानों में परिमण्डल यावत् आयत संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं।
उ. गौतम पूर्ववत् (अनन्त) है।
इसी प्रकार अनुत्तरविमानों के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए। ३२. यवाकार परिमण्डलादि पांच संस्थानों का परस्पर अनन्तरूप
प्र. भंते ! जहाँ एक यवाकार (जौ के आकार का ) परिमण्डल संस्थान है, वहाँ क्या अन्य परिमण्डल संस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उ. गौतम ! ये संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं। प्र. भंते ! जहाँ एक यवाकार परिमण्डल संस्थान है वहाँ क्या वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार आयतसंस्थान पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भंते ! जहाँ एक यवाकार वृत्तसंस्थान है, वहाँ क्या अन्य परिमण्डल संस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं। उ. गौतम ! पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार आयत संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भंते! जहाँ एक यवाकार वृत्तसंस्थान है, वहाँ क्या अन्य वृत्त संस्थान संख्यात हैं असंख्यात हैं या अनन्त हैं।
उ. गौतम ! पूर्ववत् अनन्त हैं।
इसी प्रकार आयत संस्थान पर्यन्त अनन्त जानना चाहिए।