________________
गम्मा अध्ययन
१६१७
उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति,
नो असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति।
प. भंते ! जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो
उववज्जति किंपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति?
उ. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो
उववज्जति, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो
उववज्जति। प. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए
नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! कइसु पुढवीसु
उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा,तं जहा१. रयणप्पभाए जाव७.अहेसत्तमाए।
__-विया.स.२४,उ.१.सु. ९२-९५ ८. रयणप्पभा नरय उववज्जंतेसु पज्जत्त सन्नि संखेज्जवासाउय
मणुस्सेसु उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए
रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते !
केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं
सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा।
उ. गौतम! वह संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न
होता है असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न
नहीं होता है। प्र. भन्ते ! यदि वह संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर
उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है या अपर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी
मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से
आकर उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न
नहीं होता है। प्र. भन्ते ! संख्यात वर्षायुष्क पर्याप्त मनुष्य जो नैरयिकों में उत्पन्न
होने योग्य है तो भंते! वह कितनी नरकपृथ्वियों में उत्पन्न
होता है? उ. गौतम ! वह सातों ही नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है, यथा
१. रल प्रभा में यावत् ७. अधःसप्तम नरक पृथ्वी।
प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति?
उ. गोयमा !जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं
संखेज्जा उववज्जति। संघयणा छ, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाईं।
८. रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संज्ञी संख्यात
वर्षायुष्क मनुष्य में उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य जो रलप्रभापृथ्वी
के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते! वह कितने काल
की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और
उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न
होता है। प्र. भन्ते ! वे (संख्यातवर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी मनुष्य) एक समय
में कितने उत्पन्न होते हैं? गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। उनमें छहों संहनन होते हैं। उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल-पृथक्त्व (अनेक अंगुल) की और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की होती है। शेष सब कथन भवादेश पर्यन्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के समान कहना चाहिए। विशेष-उनमें चार ज्ञान, तीन अज्ञान विकल्प से (भजना से) होते हैं। केवलीसमुद्घात को छोड़कर शेष छह समुद्घात होते हैं। उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि होता है। कालादेश से जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है (यह प्रथम गमक है)
सेसं सव्वा वत्तव्वया जहा सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भवादेसं पज्जवसाणा भाणियव्वा। णवरं-चत्तारि नाणा, तिण्णि अण्णाणा भयणाए,
छ समुग्घाया केवलिवज्जा। ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी, कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई मासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(१ पढमो गमओ)