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उ. गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेणं
पलिओवमवाससयसहस्सट्ठिईएसु उववज्जेज्जा,
अवसेसंजहा असुरकुमारुदसए, णवर-ठिई जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं दो अट्ठभागपलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्समब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (पढमी गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमट्ठिईएस उववज्जेज्जा। सेसा वत्तव्वया पढम गमग सरिसा (बिइओ गमओ)
द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! वह जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट
एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है। शेष कथन असुरकुमार उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए। विशेष-उसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अनुबंध भी स्थिति के समान है। कालादेश से जघन्य पल्योपम के दो आठवें (२/८) भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) यदि वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो तो जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट भी पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है इसका भी शेष कथन प्रथम गमक के अनुसार है। (यह दूसरा गमक है) यदि वह असंख्यात वर्षायुष्क (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट एक पल्योपम तथा एक लाख वर्ष की स्थिति में उत्पन्न होता है। शेष समग्र कथन प्रथम गमक के अनुसार है। विशेष-स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की
और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। इसी प्रकार अनुबंध भी स्थिति के समान है। कालादेश से जघन्य दो लाख वर्ष अधिक दो पल्योपम और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है)
सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, जहण्णेण वि वाससयंसहस्समब्भहियं पलिओवमं ठिईएसु उववज्जेज्जा।
सेसा वत्तव्वया पढम गमग सरिसा। णवर-ठिई जहण्णेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई दोहिं वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई वाससयसहस्समब्महियाई एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (तइओ गमओ) सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमट्टिईएसु उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा।
प. ते णं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववति ?
उ. गोयमा ! सेसा वत्तव्वया पढम गमग सरिसा भाणियव्या,
णवर-ओगाहणा-जहण्णेणं धणुपुहत्त, उक्कोसेणं साइरेगाइं अट्ठारसधणुसयाई। ठिई-जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमं। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं दो अट्ठभागपलिओवमाई, उक्कोसेण वि दो अट्ठभागपलिओवमाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जहण्णकालट्ठिईयस्स एस चेव एक्को गमो। (चउत्थो गमओ)
वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो तो जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट भी पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति
वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव (असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च)
एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! शेष कथन प्रथम गमक के अनुसार जानना चाहिए। विशेष-उनकी अवगाहना जघन्य धनुष पृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक अठारह सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट भी पल्योपम के आठवें भाग की होती है। अनुबंध भी स्थिति के समान होता है। कालादेश से जघन्य पल्योपम के दो आठवें भाग और उत्कृष्ट भी पल्योपम के दो आठवें (२/८) भाग जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। जघन्य काल की स्थिति वाले के लिए यह एक ही गमक होता है। (यह चतुर्थ गमक है)