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द्रव्यानुयोग-(३) अतः ५ वर्ण x (२ गन्ध + ५ रस + ८ स्पर्श + ५ संस्थान = २०) = १00 भेद २. गन्ध परिणत के ४६ भेद-सुरभि गन्ध के २३ तथा दुरभि गन्ध के २३ भेद होंगे।
२ गन्ध x (५ वर्ण + ५ रस + ८ स्पर्श + ५ संस्थान = २३) = ४६ भेद ३. रस परिणत के १00 भेद-प्रत्येक रस के २०-२० भेद होंगे।
५ रस x (५ वर्ण + २ गन्ध + ८ स्पर्श + ५ संस्थान = २०) = १०० भेद ४. स्पर्श परिणत के १८४ भेद-स्पर्श में यह विशेषता है कि एक साथ दो विरोधी स्पर्श नहीं पाए जाते हैं, किन्तु शेष स्पर्श उसमें एक साथ रह सकते हैं। विरोधी स्पों के युगल इस प्रकार हैं-कर्कश-मृदु, गुरु-लघु, शीत-उष्ण, स्निग्ध-रुक्ष। जहाँ कर्कश परिणमन होता है वहाँ मृदु परिणमन नहीं होता। इसी प्रकार अन्य विरोधी युगलों में समझना चाहिए। इसके भंग इस प्रकार बनेंगे
१ स्पर्श x (५ वर्ण + २ गन्ध + ५ रस + ६ स्पर्श + ५ संस्थान = २३) = २३ भेद
१ स्पर्श के २३ भेद अतः ८ स्पर्श के ८ x २३ = १८४ भेद होंगे। ५. संस्थान परिणत के १०० भेद-प्रत्येक संस्थान के २०-२० भेद होंगे।
५ संस्थान x (५ वर्ण + २ गंध + ५ रस + ८ स्पर्श = २०) = १00 भेद इस प्रकार वर्णादि परिणमन की दृष्टि से १00 + ४६ + १00 + १८४ + 900 = ५३० भेद या भंग सम्पन्न होते हैं।
संख्या की दृष्टि से रूपी अजीव द्रव्य अर्थात् पुद्गल अनन्त हैं। परमाणु पुद्गल भी अनन्त हैं तथा द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध भी अनन्त हैं।
प्रस्तुत अध्ययन में धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल नामक अरूपी अजीव द्रव्यों के सम्बन्ध में विशेष सामग्री नहीं है, तथापि इनके सम्बन्ध में कुछ बातें ज्ञातव्य हैं, यथा१. धर्म, अधर्म एवं आकाश द्रव्य अस्तिकाय हैं। इनके अतिरिक्त जीव एवं पुद्गल भी अस्तिकाय हैं किन्तु काल अप्रदेशी होने के कारण अस्तिकाय
नहीं होता। जो संघात बनाकर रह सकते हैं वे अस्तिकाय कहलाते हैं। काल द्रव्य ऐसा नहीं है। २. धर्म द्रव्य गति में सहायक निमित्त होता है, अधर्म द्रव्य स्थिति में सहायक निमित्त होता है, आकाश अवगाहन देने में सहायक निमित्त होता
है, काल पर्याय-परिणमन में सहायक होता है। ३. आकाश लोक एवं अलोक दोनों में व्याप्त है। धर्म एवं अधर्म द्रव्य लोकव्यापी हैं। काल में व्यवहार काल अढ़ाई द्वीप तक विद्यमान है, आगे
निश्चय काल है, व्यवहार काल नहीं। ४. संख्या की दृष्टि से धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय एक-एक द्रव्य हैं। काल को निश्चय की अपेक्षा विभक्त नहीं किया जा
सकता। ५. समस्त अरूपी अजीव द्रव्यों में वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श गुण नहीं पाए जाते, क्योंकि ये रूपी के परिचायक हैं। ६. काल की दृष्टि से इनमें सभी द्रव्य आदि एवं अन्त रहित हैं। ७. आकाश में धर्म, अधर्म आदि का अवगाहन एक साथ होने पर भी इनकी पृथकता इनके गुणों से सिद्ध होती रहती है।