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पुद्गल अध्ययन
एवं लुक्खेण वि समं चउसट्ठि भंगा कायव्वा जावसव्वे लुक्खे देसा कक्खडा देसा मउया देसा गरुया देसा लहुया देसा सीया देसा उसिणा,
एवं सत्तफासे पंचवारसुत्तरा भंगसया भवति ।
जइ अट्ठफासे
१-४. देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लक्खे ४,
५-८. देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उसिणा देसे निद्धे देसे लुक्खे ४,
९-१२. देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहु देसा सीया देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे ४,
१३-१६. देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसा सीया देसा उसिणा देसे निद्धे देसे लक्खे ४,
एए चत्तारि चउक्का सोलस भंगा
१७-३२. देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे,
एवं एए गरुएणं एगत्तएणं लहुएणं पुहत्तएण सोलस भंगा
कायव्वा ।
३३-४८. देसे कक्खडे देसे मउए देसा गरुया देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे,
एए वि सोलस भंगा कायव्वा ।
४९-६४. देसे कक्खडे देसे मउए देखा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे,
एए वि सोलस भंगा कायव्वा ।
सव्वे वि ते चउसट्ठि भंगा कक्खडमउएहिं एगत्तएहिं
६५-१२८. ताहे कक्खणं एगत्तएणं मउएणं पुहत्तएणं एए चेव चउसट्ठि भंगा कायव्वा,
१२९-१९२. ताहे कक्खडेणं पुहत्तएणं मउएणं एगतएणं चउसठि भंगा कायव्वा,
१९३-२५६. ताहे एएहिं चैव दोहिंवि पुस्तएहिं चउसट्ठि
भंगा कायव्वा जाव
देसा कक्खडा देसा मउया देसा गरुया देसा लहुया देसा सीया देखा उसिणा देसा निद्धा देसा लुक्खा,
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इस प्रकार रुक्ष के साथ भी ६४ भंग कहने चाहिए यावत्सर्वरुक्ष, अनेक अंश कर्कश, अनेक अंश मृदु, अनेक अंश गुरु, अनेक अंश लघु, अनेक अंश शीत और अनेक अंश उष्ण होते हैं।
इस प्रकार ये सब मिलकर सप्तस्पर्शी (बादरपरिणाम अनन्तप्रदेशी स्कन्ध) के पांच सौ बारह (८ x ६४ = ५१२ ) भंग होते हैं।
यदि आठ स्पर्श वाला हो तो
१-४. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, एक अंश गुरु, एक अंश लघु, एक अंश शीत, एक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है, यहाँ चार भंग कहने चाहिए। ५-८. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, एक अंश गुरु, एक अंश लघु, एक अंश शीत, अनेक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है, यहाँ भी चार भंग कहने चाहिए। ९-१२. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, एक अंश गुरु, एक अंश लघु, अनेक अंश शीत, एक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है, यहाँ भी चार भंग कहने चाहिए। १३-१६. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, एक अंश गुरु, एक अंश लघु, अनेक अंश शीत, अनेक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है, यहाँ भी चार भंग कहने चाहिए।
इस प्रकार इन चार चतुष्कों के १६ भंग होते हैं। १७-३२. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, एक अंश गुरु, अनेक अंश लघु, एक अंश शीत, एक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है।
इस प्रकार गुरुपद को एक वचन में और लघु पद को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् १६ भंग करने चाहिए।
३३- ४८. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, अनेक अंश गुरु, एक अंश लघु, एक अंश शीत, एक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है।
इसके भी १६ भंग (पूर्ववत् ) कहने चाहिए।
४९-६४. एक अंश कर्कश, एक अंश मृदु, अनेक अंश गुरु, अनेक अंश लघु, एक अंश शीत, एक अंश उष्ण, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है।
इसके भी पूर्ववत् १६ भंग कहने चाहिए।
कर्कश और मृदु को एक वचन में रखने से ये सब मिलाकर ( १६ x ४ = ६४) भंग होते हैं।
६५-१२८. तत्पश्चात् कर्कश को एक वचन में और मृदु को बहुवचन में रखकर ६४ भंग कहने चाहिए। १२९-१९२. तत्पश्चात् कर्कश को बहुवचन में और मृदु को एकवचन में रखकर पूर्ववत् ६४ भंग कहने चाहिए। १९३-२५६. तत्पश्चात् कर्कश और मृदु दोनों को बहुवचन में रखकर ६४ भंग कहने चाहिए यावत्
अनेक अंश कर्कश, अनेक अंश मृदु, अनेक अंश गुरु, अनेक अंश लघु, अनेक अंश शीत, अनेक अंश उष्ण, अनेक अंश स्निग्ध और अनेक अंश रुक्ष होते हैं।