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एवं जाव असत्तमाए।
प. अत्थि णं भंते ! सोहम्मस्स कप्पस्स अहेदव्वाइं वण्णओ काल-नील-लोहिय- हालिद्द-सुक्किलाई जाव फासओ कक्खड-मउय-गरुय-लहुय सीय-उसिण- निद्ध- लुक्खाई, अन्नमन्नबद्धाई अन्नमन्नपुट्ठाई जाव अन्नमन्नघडत्ताए चिठति ?
उ. गोयमा ! एवं चेव ।
एवं जाव ईसिपारा पुढवीए ।
- विया. स. १८, उ. १०, सु. ९-१२
१६. जंबुद्दीवाईसु सोहम्मकप्पाईसु नेरइयावासेसु य वण्णाइ परूवणं
जंबुद्दीवे जाव सयंभुरमणे समुद्दे,
सोहम्मे कप्पे जाव ईसिपव्धारापुढवी,
नेरइयावासा जाव वेमाणियावासा एयाणि सव्वाणि अट्ठफासाणि । -विया. स. १२, उ.५, सु. १८
१७. गब्भं वक्कममाणे जीवस्स वण्णाइ परूवणंप. जीवे णं भंते! गन्धं वक्कममाणे कतिवण्णं कतिगंध कतिरसं कतिफास परिणामं परिणमइ ?
उ. गोयमा ! पंचवण्णं दुगंधं पंचरसं अट्ठफासं परिणामं परिणमइ । -विया. स. १२, उ. ५, सु. ३६
१८. चउवीसदंडएसु वण्णाइ परूवणं
प. बं. १. नेरड्या णं भंते ! कतिवण्णा जाब कतिफासा पन्नत्ता ?
उ. गोयमा ! वेउव्विय तेयाइं पडुच्च पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा अट्ठफासा पन्नत्ता ।
कम्मगं पडुच्च पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा चउफासा पन्नत्ता ।
जीवं पडुच्च अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता । दं. २- ११. एवं जाव थणियकुमारा ।
प. . १२. पुढयिकाइया णं भंते! कतिवण्णा जाव कतिफासा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! ओरालिय-तेयगाई पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता,
कम्मगं पडुच्च जहा नेरइयाणं जीवं पडुच्च तहेव ।
६. १३-१९. एवं जाव चउरिन्दिया,
णवरं - वाउकाइया ओरालिय-वेउव्विय तेयगाइं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता ।
से जहा नेरइयाणं ।
८. २०. पंचेन्दियतिरिक्खजोगिया जहा बाउकाइया।
द्रव्यानुयोग - (३)
इसी प्रकार अधः सप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भंते! सौधर्म कल्प के नीचे वर्ग से कृष्ण, नीले, रक्त, पीत और शुक्ल हैं यावत् स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष हैं, अन्योन्यबद्ध हैं, अन्योन्यस्पृष्ट हैं यावत् अन्योन्य (परस्पर) मिले हुए हैं?
उ. गौतम ! उसी प्रकार पूर्ववत् हैं।
इसी प्रकार ईषत्प्राभारा पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए।
१६. जम्बुद्वीपादि सौधर्मकल्पादि और नैरविकावास आदि में वर्णादि का प्ररूपण
जम्बूद्वीप से स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त,
सौधर्म कल्प से ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पर्यन्त,
नैरविकावास से वैमानिकावास पर्यन्त सब आठ स्पर्श वाले जानने चाहिए।
१७. गर्भ में उत्पन्न होते हुए जीव के वर्णादि का प्ररूपण
प्र. भंते! गर्भ से उत्पन्न होता हुआ जीव कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श परिणाम से परिणमित होता है ?
उ. गौतम ! वह जीव पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाले परिणाम से परिणामित होता है।
१८. चौबीसदण्डकों में वर्णादि का प्ररूपण
प्र. दं. १. भंते! नैरयिकों में कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वैक्रिय और तैजस् पुद्गलों की अपेक्षा उनमें पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श कहे गए हैं।
कार्मण पुद्गलों की अपेक्षा पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श कहे गए हैं।
जीव की अपेक्षा वर्णरहित यावत् स्पर्श रहित कहे गए हैं।
दं. २ ११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त वर्णादि कहना चाहिए।
प्र. दं. १२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ?
उ. गौतम औदारिक और तेजस् पुद्गलों की अपेक्षा पाँच वर्ग यावत् आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं।
कार्मण शरीर और जीव की अपेक्षा पूर्ववत् नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
दं. १३-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त वर्णादि का कथन करना चाहिए।
विशेष वायुकायिक, औदारिक, वैक्रिय और तेजस् पुद्गलों की अपेक्षा पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं। शेष कथन नैरयिकों के समान हैं।
दं. २० पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का कथन भी वायुकायिकों के समान जानना चाहिए।