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एसो अपच्छिमो भंगो, सव्वेते अट्ठफासे दो छप्पन्ना भंगसया भवंति। एवं एए बायरपरिणए अणंतपएसिए खंधे सव्वेसु संजोएसुबारस छन्त्रउया भंगसया भवंति।
-विया. स. २०,उ.५, सु.१-१४
११. पाणाइवायाई अट्ठारस पावट्ठाणेसु वण्णाइ परूवणंप. अह भंते ! पाणाइवाए मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे
परिग्गहे, एस णं कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे,
कतिफासे पन्नत्ते? उ. गोयमा ! पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे चउफासे पन्नत्ते।
प. अह भंते ! कोहे कोवे रसे दोसे अखमा संजलणे कलहे
चंडिक्के भंडणे विवादे एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे
पन्नत्ते? उ. गोयमा ! पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे चउफासे पन्नत्ते।
प. अह भंते ! माणे मय दप्पे थंभे गव्वे अत्तुक्कोसे परपरिवाए
उक्कोसे अवक्कोसे उन्नए उन्नामे दुन्नामे एस णं कतिवण्णे
जाव कतिफासे पन्नत्ते? उ. गोयमा ! पंचवण्णे दुगंधे पंच रसे चउफासे पन्नत्ते।
द्रव्यानुयोग-(३) यह चौसठवाँ अन्तिम भंग हैं। ये सब मिलाकर दो सौ छप्पन (२५६) अष्टस्पर्शी भंग होते हैं। इस प्रकार बादर परिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के सर्वसंयोगी (चतुःसंयोगी १६, पंचसंयोगी १२८, छह संयोगी ३८४, सप्त संयोगी ५१२ और अष्ट संयोगी २५६
सब मिलाकर) बारह सौ छिनवें (१२९६) भंग होते हैं। ११. प्राणातिपातादि अठारह पापस्थानों में वर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह,
ये (सब) कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने
स्पर्श वाले कहे गए हैं? उ. गौतम ! (ये) पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! क्रोध, कोप, रोष, दोष (द्वेष), संज्वलन, कलह,
चाण्डिक्य, भण्डन और विवाद ये (सभी) कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ये (सब) पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! मान, मद, दर्प, स्तम्भ, गर्व, अत्युत्क्रोश, परपरिवाद,
उत्कर्ष, अपकर्ष, उन्नत, उन्नाम और दुर्नाम ये (सब) कितने
वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ये (सब) पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, नूम, कल्क,
करुपा, जिह्मता, किल्विष, आचरणता. गहनता. वंचनता, प्रतिकुंचनता और सातियोग ये (सब) कितने वर्ण यावत्
कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ये सब पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! लोभ, इच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिज्या,
अभिज्या, आशंसनता, प्रार्थनता, लालप्पनता, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा और नन्दिराग ये (सब)
कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ये सब पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! प्रेम-राग, द्वेष, कलह यावत् मिथ्यादर्शन शल्य पर्यन्त
(ये सब पापस्थान) कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे
गए हैं? उ. गौतम ! ये सब पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस और चार स्पर्श
वाले कहे गए हैं। १२. प्राणातिपातादि अठारह पापस्थान विरमणों में वर्णादि के
अभाव का प्ररूपणप्र. भंते ! प्राणातिपात-विरमण यावत् परिग्रह-विरमण तथा
प. अह भंते ! माया उवही नियडी बलये गहणे णूमे कक्के
कुरुवे जिम्हे किब्बिसे आयरणता ग्रहणया वंचणया पलिउंचणया साइजोगे एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे
पन्नत्ते? उ. गोयमा ! पंचवण्णे दुगंधे पंच.रसे चउफासे पन्नत्ते।
प. अह भंते ! लोभे इच्छा मुच्छा कंखा गेही तण्हा भिज्झा.
अभिज्झा आसासणता पत्थणता लालप्पणता कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा नंदिरागे एस णं कतिवण्णे
जाव कतिफासे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंच वण्णे दुगंधे पंचरसे चउफासे पन्नत्ते।
प. अह भंते ! पेज्जे दोसे कलहे जाव मिच्छादसणसल्ले एसणं
कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णत्ते?
उ. गोयमा ! पंच वण्णे, दुगंधे, पंच रसे, चउफासे पण्णत्ते।
-विया.स.१२, उ.५, सु.२-७ १२. पाणाइवायाई अट्ठारस पावट्ठाण विरमणेसु वण्णाइ अभाव
परूवर्णप. अह भंते ! पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे,