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द्रव्यानुयोग-(३) १. खंधा, २. खंधदेसा,
१. स्कन्ध,
२. स्कन्धदेश, ३. खंधप्पएसा, ४. परमाणुपोग्गला
३. स्कन्धप्रदेश, ४. परमाणुपुद्गल।
-पण्ण.प.१.सु.६ ४. स्खचिअजीवाण मयप्पमेया--
४. रूपी अजीव के भेद-प्रभेदसे समासऔषंचविहा पण्णत्ता, तं जहा
वे (चारों) संक्षेप से पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. वणपरिणया, २. गंधपरिणया,
१. वर्णपरिणत, - २. गन्धपरिणत, ३. रसपरिणया, ४. फासपरिणया,
३. रसपरिणत,
४. स्पर्शपरिणत, ५. संत्रणपरिणया।
५. संस्थानपरिणत। जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा
जो वर्णपरिणत हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कालवण्णपरिणया,
१. काले वर्ण के रूप में परिणत, २. नीलेषण्णपरिणया,
२. नीले वर्ण के रूप में परिणत, ३. लोहियवण्णपरिणया,
३. लाल वर्ण के रूप में परिणत, ४. हालिद्दवण्णपरिणया,
४. पीले वर्ण के रूप में परिणत, ५. सुक्किल्लवण्णपरिणया।
५. शुक्ल (श्वेत) वर्ण के रूप में परिणत। जे गंधपरिणया ते दुविहाँ पण्णता,तं जहा
जो गन्धपरिणत हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सुब्मिगंधपरिणयाय,
१. सुगन्ध के रूप में परिणत, २. दुब्मिगंधपरिणया य।
२. दुर्गन्ध के रूप में परिणत। १. (क) खंधा य खंधदेसा य, तप्पएसा तहेव य।
उ. पंचविहे पण्णत्ते, तं जहापरमाणुणो य बोधव्या, रूविणो य चउव्यिहा॥
१. कालवण्णगुणप्पमाणे जाव ५. सुक्किल्लवण्णगुणप्पमाणे। -उत्त.अ.३६,गा.१० से तं वण्णगुणप्पमाणे।
-अणु.सु.४३० (ख) जीवा पडि.१.सु.५
(ग) पंच वण्णा पण्णत्ता, तं जहा(ग) बिया.स.२, उ.१०,सु.११
१. किण्हा, २. नीला, ३. लोहिया, (घ) बिया.स.२५, उ.२, सु.२
४. हालिद्दा, ५. सुक्किला। ठाणं. अ.५, उ.१, सु. ३९०/१ (ङ) अणु.सु.४०२
(घ) वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। २. प. (क) से कितं गुणणामे?
किण्हा नीलारे लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा॥ उ. पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा
(ङ) जीवा. पडि.१, सु.५ -उत्त. अ.३६, गा.१६ १. वण्णणामे, २. गंधणामे, ३. रसणामे, ४. फासणामे, (च) विया. स.८, उ.१, सु. ४८ ५. संठाणणाम। -अणु. कालदारे सु. २१९
(छ) विया. स.८, उ.१,सु.७५ प. (ख) से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? .
४. प. (क) से किं तं गंधनामे? उ. पंचविहे पण्णते, तं जहा
उ. दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. वण्णगुणपमाणे, २. गंधगुणप्पमाणे, ३. रसगुणप्पमाणे, ४. १. सुरभिगंधनामे य,२. दुरभिगंधनामे या से तं गंधनामे। फासगुणप्पमाणे, ५. संठाणगुणप्पमाणे।-अणु. कालदारे सु. ४२९
_ -अणु.कालदारे सु.२२१ (ग) वण्णऔ गंधओ चैव, रसओ फासओ तहा।
प. (ख) से किं तं गंधगुणप्पमाणे? संठाणी य विलओ, परिणामो तेसि पंचहा॥
उ. दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उत्त.अ.३६,गा.१५
१. सुरभिगंधगुणप्पमाणे, २. दुरभिगंधगुणप्पमाणे य। (घ) विया. स.८,उ.१, सु. ४८
से तं गंधगुणप्पमाणे।
-अणु. कालदारे सु. ४३१ (ड) वियाँ.स.८,उ.१,सु.७४
(ग) गंधओ परिणया जे उ दुविहा ते वियाहिया। (च) जीवा. पडि.१,सु.५
१. सुमिगंधपरिणया, २. दुब्मिगंधा तहेव य॥ ३. प. (ख) से कितयण्णनामे?
-उत्त.अ.३६,गा.१७ उ. पंचविहे पण्णसे,तं जहा
(घ) जीवा. पडि.१.सु.५ १. कालवण्णनामे जाव ५. सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णणामे।
(ङ) विया.स.८, उ.१,सु.४८ प. (ख) से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? -अणु. सु. २२०
(च) विया. स.८, उ.१, सु.७६ १. (क) इह "स्कन्धा" इत्यत्र बहुवचनं पुद्गलस्कन्धानामनन्तत्वख्यापनार्थम् तथा चौक्तम्-“दव्वओ णं पुग्गलत्यिकाए णं अणते" इत्यादि, (ख) “स्कन्ध-देशः" स्कन्धानामेव स्कन्धत्वपरिणाममजहतां बुद्धिपरिकल्पिता द्रव्यादिप्रदेशात्मका विभागाः,
अत्रापि बहुवचनमनन्तप्रदेशिकेषु स्कन्धेषु स्कन्धदेशानन्तत्वसंभावनार्थम् (ग) “स्कन्ध-प्रदेशाः" स्कन्धानां स्कन्धत्वपरिणाममजहता प्रकृष्टा देशाः निर्विभागा भागाः परमाणव इत्यर्थः, (घ) “परमाणु-पुद्गलाः स्कन्धत्वपरिणामरहिताः केवलाः परमाणवः"