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एगा अणंतगुणकालयाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं वण्ण, गंध, रस, फासा भाणियव्या जाव एगा अणंतगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं वग्गणा।
एगा जहन्नपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एगा उक्कोसपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एगा अजहन्नुक्कोसपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। एवं जहन्नोगाहणगाणं, उक्कोसोगाहणगाणं, अजहन्नुक्कोसोगाहणगाणं,
एवं जहन्नठिइयाणं, उक्कोसठिइयाणं, अजहन्नुक्कोसठिइयाणं,
एवं जहन्नगुणकालगाणं, उक्कोसगुणकालगाणं, अजहन्नुक्कोसगुणकालगाणं, एव वण्ण-गंध-रस-फासाणं वग्गणा भाणियव्वा जाव एगा अजहन्नुक्कोसगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं (खंधाणं) वग्गणा।
-ठाणं अ.१,९.४३ ३. पोग्गलकरणाणं भेयप्पमेय परूवणं
प. कइविहे णं भंते ! पोग्गलकरणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पोग्गलकरणे पन्नत्ते,तं जहा
१. वण्णकरणे,२.गंधकरणे,३.रसकरणे,
४. फासकरणे,५.संठाणकरणे। प. वण्णकरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते,तं जहा
१. कालवण्णकरणे जाव ५. सुक्किलवण्णकरणे। एवमेव-गंधकरणे दुविहे, रसकरणे पंचविहे, फासकरणे
अट्ठविहे। प. संठाणकरणे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते,तं जहा
१.परिमण्डल संठाणकरणे जाव
५. आयतसंठाणकरणे। -विया. स. १९, उ. ९, सु.११-१४ ४. पोग्गल-परिणामस्स चउव्विहत्तं
चउविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते,तं जहा१.वण्णपरिणामे,२.गंधपरिणामे,
३.रसपरिणामे, ४.फासपरिणामे। -ठाणं.अ.४, उ. १, सु. २६५ ५. पंच पोग्गल परिणामाणं भेयप्पभेया
प. कइविहे णं भंते ! पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते,तं जहा
१. वनपरिणामे, २. गंधपरिणामे, ३. रसपरिणामे, ४. फासपरिणामे,
५. संठाणपरिणामे। प. वनपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
[ द्रव्यानुयोग-(३) अनन्तगुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार सभी वर्ण, गन्ध, रस और स्पों के एक गुण काले यावत् अनन्तगुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक कहनी चाहिए। जघन्य-प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है। उत्कृष्ट-प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार जघन्य अवगाहना वाले स्कन्धों की, उत्कृष्ट अवगाहना वाले स्कन्धों की और मध्यम अवगाहना वाले स्कन्धों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार जघन्य स्थिति वाले स्कन्धों की, उत्कृष्ट स्थिति वाले स्कन्धों की और मध्यम स्थिति वाले स्कन्धों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार जघन्यगुण काले स्कन्धों की, उत्कृष्ट गुण काले स्कन्धों की और मध्यम गुण काले स्कन्धों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार शेष सभी वर्ण-गन्ध-रस और स्पों के जघन्यगुण, उत्कृष्टगुण और मध्यमगुण वाले पुद्गलों (स्कन्धों) की वर्गणा
एक-एक कहनी चाहिए। ३. पुद्गल करण के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण
प्र. भंते ! पुद्गल-करण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! पुद्गल-करण पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
१. वर्णकरण, २. गन्धकरण, ३. रसकरण,
४. स्पर्शकरण, ५. संस्थानकरण। प्र. भंते ! वर्णकरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वर्णकरण पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
१. कृष्णवर्णकरण यावत् ५. शुक्लवर्णकरण। इसी प्रकार गंधकरण दो प्रकार का, रसकरण पाँच प्रकार का
एवं स्पर्शकरण आठ प्रकार का कहा गया है। प्र. भंते ! संस्थान करण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
१. परिमण्डल-संस्थानकरण यावत्
५. आयत-संस्थानकरण। ४. पुद्गलों के परिणाम का चतुर्विधत्व
पुद्गल परिणाम चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. वर्ण-परिणाम,
२. गंध-परिणाम, ३. रस-परिणाम,
४. स्पर्श-परिणाम। ५. पुद्गल परिणाम के पाँच भेद-प्रभेद
प्र. भंते ! पुद्गल परिणाम कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! पुद्गल-परिणाम पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. वर्ण-परिणाम, २. गंध-परिणाम, ३. रस-परिणाम, ४. स्पर्श-परिणाम,
५. संस्थान-परिणाम। प्र. मंते ! वर्ण-परिणाम कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा