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समुद्घात अध्ययन : आमुख सम् एवं उद् उपसर्ग पूर्वक हन् धातु से समुद्घात शब्द बना है। 'हन्' धातु यहाँ पर गमनार्थक है। विभिन्न कारणों से जब जीव के आत्म-प्रदेश शरीर से बाहर निकलते हैं तो उसे समुद्घात कहा जाता है। वे आत्म प्रदेश पुद्गल युक्त होते हैं। इसलिए समुद्घातों का निरूपण करते समय आगम में पुद्गलों को भी शरीर से बाहर निकालने का वर्णन मिलता है। समुद्घात सात प्रकार के हैं- १. वेदना, २. कषाय, ३. मारणान्तिक, ४. वैक्रिय, ५. तैजस्, ६. आहारक और ७. केवली। ये समुद्घात स्वतः भी होते हैं और आवश्यकता होने पर किए भी जाते हैं।
प्रस्तुत अध्ययन समुद्घात के सम्बन्ध में अनेकविध जानकारी प्रदान करता है। चौबीस दण्डकों में समुद्घातों का निरूपण है जिससे स्पष्ट होता है कि आहारक एवं केवली समुद्घात तो मात्र मनुष्यों में ही पाया जाता है। तैजस् समुद्घात मनुष्य के साथ देवों एवं तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीवों में भी होता है। वैक्रिय समुद्घात इन सबके अतिरिक्त वायुकाय एवं नैरयिक जीवों में भी होता है। वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घात सभी जीवों में होते हैं। एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीवों में तो ये तीन समुद्घात ही मिलते हैं।
आत्मा को स्वदेह परिमाण स्वीकार करके भी जैनदर्शन में समुद्घात के माध्यम से आत्म-प्रदेशों का शरीर के बाहर निकलना प्रतिपादित किया गया है। वे पुद्गल युक्त आत्म-प्रदेश इतने सूक्ष्म होते हैं कि उनके बाहर निकलने का अनुभव इन्द्रियों द्वारा नहीं किया जा सकता। केवली समुद्घात के समय आत्म-प्रदेश सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हो जाते हैं किन्तु उसका अनुभव छद्मस्थ जीवों को नहीं होता। जैनदर्शन में विद्यमान समुद्घात की अवधारणा वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय है।
वेदना के असह्य होने पर उसे सहन करने अथवा निर्जरित करने के लिए जीव वेदना-समुद्घात करता है। इस प्रकार सभी समुद्घात विशेष परिस्थितियों में सप्रयोजन किए जाते हैं। वैक्रिय समुद्घात वैक्रिय लब्धि होने पर अथवा उत्तरवैक्रिय करने पर किया जाता है। तैजस समुद्घात तेजोलेश्या का प्रयोग करते समय या अन्य प्रसंग में किया जाता है। मारणांतिक समुद्घात देह-त्याग के समय होता है। कषाय समुद्घात कषाय का आवेग बढ़ने पर होता है। आहारक समुद्घात तब किया जाता है जब कोई चौदह पूर्वधारी मुनि आहारक शरीर का पुतला जिनेन्द्र देव से विशिष्ट जानकारी हेतु बाहर भेजता है। केवली समुद्घात का प्रयोजन भिन्न है। जब केवली के आयुष्य कर्म की स्थिति कम हो तथा वेदनीय, गोत्र एवं नामकर्म की स्थिति अधिक हो तो उसे सम करने के लिए केवली समुद्घात किया जाता है। केवली समुद्घात के अलावा छह समुद्घात छद्मस्थों में पाए जाते हैं, अतः इन्हें छाद्यस्थिक समुद्घात कहा जाता है। छाद्यस्थिक समुद्घातों का काल असंख्यात समय है जबकि केवली समुद्घात का काल मात्र आठ समय है।
इस अध्ययन में सातों समुद्घातों का चौबीस दण्डकों में क्षेत्र, काल और क्रिया के आधार पर भी प्रतिपादन है जो समुद्घात को समझने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अतीत एवं अनागत समुद्घातों का एकत्व एवं बहुत्व के द्वारा चौबीस दण्डकों में निरूपण उनकी वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करता है। केवली समुद्घात एक बार होता है और वह भी केवली बनने पर किसी-किसी केवली को होता है। आहारक समुद्घात मनुष्य पर्याय में एक जीव की अपेक्षा अतीत में उत्कृष्ट तीन हुए हैं तथा भविष्य में चार से अधिक नहीं होंगे। यह प्रत्येक मनुष्य के हो, यह आवश्यक नहीं है। वेदना, कषाय, मारणांतिक, वैक्रिय एवं तैजस् समुद्घात कदाचित् असंख्यात तथा कदाचित् अनन्त तक हो सकते हैं।
अल्प-बहुत्व का विचार करने पर ज्ञात होता है कि आहारक समुद्घात से समवहत जीव सबसे अल्प हैं। उनकी अपेक्षा केवली समुद्घात से समवहत जीव संख्यातगुणे हैं। तैजस् समुद्घात से समवहत जीव उनसे भी असंख्यातगुणे हैं। वैक्रिय समुद्घात से समवहत जीव उनसे अनन्तगुणे हैं। कषाय समुद्घात से समवहत जीव उनसे असंख्यातगुणा तथा वेदना समुद्घात से समवहत जीव उनसे विशेषाधिक हैं। असमवहत (समुद्घात रहित) जीव उनसे असंख्यातगुणे हैं। इस प्रकार समुद्घात रहित जीवों की संख्या सबसे अधिक है। इससे फलित होता है कि समुद्घात कभी-कभी ही किया जाता है एवं यह कोई अनिवार्य कार्य नहीं है। वेदना आदि निमित्तों को प्राप्त कर जीव यह क्रिया करता है। इस अध्ययन में प्रत्येक दण्डक के आधार पर समुद्घातों का अल्प-बहुत्व दिया गया है।
कषाय समुद्घात के चार भेद किए गए हैं-१. क्रोध समुद्घात, २. मान समुद्घात, ३. माया समुद्घात और ४. लोभ समुद्घात। नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के जीवों में ये चारों समुद्घात कहे गए हैं। इनका भी अतीत अनागत द्वार से वर्णन किया गया है तथा प्रत्येक दण्डक में इनका अल्प बहुत्व निर्दिष्ट है। केवली समुद्घात पर इस अध्ययन में विशेष सामग्री संकलित है। उसके प्रयोजन, कार्य, निर्जीर्ण चरम पुद्गलों के सूक्ष्मत्व, समय, योग-प्रयोग, मोक्षगमन आदि का विशद निरूपण है।
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