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( १६८८ - १६८८
णवरं-सव्वेसिं सट्ठाणे एगुत्तरिए परहाणे जहेव असुरकुमारस्स।
पुढविक्काइयस्स णेरइयत्ते जाव थणियकुमारत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि।
जस्सऽत्थि सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता।
पुढविकाइयस्स पुढविक्काइयत्ते जाव मणूसत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि।
जस्सऽस्थि एगुत्तरिया।
वाणमंतरत्ते जहाणेरइयत्ते। जोइसिय-वेमाणियत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि। जस्सऽस्थि, सिय असंखेज्जा,सिय अणंता।
एवं जाव मणूसेऽविणेयव्यं। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारे।
द्रव्यानुयोग-(३) विशेष-इन सबके स्वस्थान में अनागत (कषायसमुद्घात) एक से लगा कर उत्तरोत्तर अनन्त हैं और परस्थान में असुरकुमार के समान हैं। पृथ्वीकायिक जीव के नारकपर्याय से स्तनितंकुमारपर्याय पर्यन्त अनन्त (कषायसमुद्घात) अतीत में हुए हैं और अनागत में किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होने वाले हैं। पृथ्वीकायिक के पृथ्वीकायिक पर्याय से मनुष्य पर्याय तक में (कषायसमुद्घात) अतीत में अनन्त हुए हैं। अनागत (कषाय समुद्घात) किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं, उसके एक से लगा कर अनन्त होने वाले हैं। वाणव्यन्तर-पर्याय में नारक पर्याय के समान जानना चाहिए। ज्योतिष्क और वैमानिक पर्याय अतीत में अनन्त हुए हैं। अनागत किसी के होने वाले हैं, किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं, उसके कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होने वाले हैं। इसी प्रकार मनुष्य के लिए भी जानना चाहिए। वाणव्यन्तर,ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन असुरकुमार के समान करना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में एकोत्तर की वृद्धि से वैमानिक के वैमानिक पर्याय पर्यन्त कहना चाहिए।
इस प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में होते हैं। ३. मारणांतिक समुद्घात
मारणान्तिकसमुद्घात स्वस्थान में और परस्थान में भी एकोत्तर की वृद्धि से वैमानिक का बैमानिक पर्याय पर्यन्त कहना चाहिए।
इस प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में होते हैं। ४. वैक्रियसमुद्घात
वैक्रियसमुद्घात का सम्पूर्ण कथन कषायसमुद्घात के समान करना चाहिए। विशेष-जिसके (वैक्रिय समुद्घात) नहीं होता, उसका कथन नहीं करना चाहिए।
यहाँ भी चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में होते हैं। ५. तेजस्समुद्घात
तैजस् समुद्घात का कथन मारणान्तिकसमुद्घात के समान करना चाहिए। विशेष-जिसके वह होता है, (उसी के कहना चाहिए।) इस प्रकार ये भी चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में कहने चाहिए।
णवरं-सट्ठाणे एगुत्तरियाए भाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते।
एवं एए चउवीसं चउवीसा दंडगा। ३. मारणांतियसमुग्घाए
मारणांतियसमुग्घाओ सट्ठाणे वि, परट्ठाणे वि एगुत्तरियाए नेयव्यो जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते।
एवमेए चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्या। ४. बेउब्वियसमुग्घाए
वेउव्वियसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्घाओ तहा णिरवसेसो भाणियव्यो। णवरं-जस्स णत्थि तस्स ण वुच्चइ
एत्थ विचउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा। ५. तेजस्समुग्घाए
तेजस्समुग्घाओ जहा मारणांतियसमुग्धाओ।
णवर-जस्स अत्थि। एवं एए विचउवीसंचउवीसा दंडगा भाणियव्या।