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चरमाचरम अध्ययन
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(४) सण्णी दारं
सण्णी जहा आहारओ। एवं असण्णी वि। नो सन्नी-नो असन्नी जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमो,
मणुस्सपदे चरिमो एगत्तपुहत्तेणं। (५) सलेस्सा दारं
सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ,
नवरं-जस्स जा अत्थि।
अलेस्सो जहा नो सण्णी-नो असण्णी। (६) दिट्ठी दारं
सम्मद्दिट्ठी जहा अणाहारओ। मिच्छादिट्ठी जहा आहारओ। सम्मामिच्छद्दिट्ठी एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं सिय चरिमे, सिय अचरिमे।
पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। (७) संजयदारं
संजओजीवो मणुरसोय जहा आहारओ। असंजओ वि तहेव। संजयासंजओ वि तहेव। णवरं-जस्स जं अत्थि। । नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजयासंजओ जहा नोभव
सिद्धीय-नो अभवसिद्धीओ। (८) कसाय दारं
सकसायी जाव लोभकसायी सव्वट्ठाणेसु जहा आहारओ। अकसायी जीवपए सिद्धे य नो चरिमो,अचरिमो।
मणुस्सपदे सिय चरिमो, सिय अचरिमो। (९) णाण दारं
णाणी जहा सम्मद्दिट्ठी सव्वत्थ। आभिणिबोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी जहा आहारओ। णवरं-जस्स जं अत्थि। केवलनाणी जहा नो सण्णी-नो असण्णी। अण्णाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ।
(४) संज्ञी द्वार
संज्ञी जीव आहारक जीव के समान है। इसी प्रकार असंज्ञी भी (आहारक के समान हैं।) नो संज्ञी-नो असंज्ञी जीवपद और सिद्धपद में अचरम है,
मनुष्यपद में एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा चरम है। (५) लेश्या द्वार
सलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी का कथन आहारकजीव के समान है। विशेष-जिसके जो लेश्या हो वही कहनी चाहिए।
अलेश्यी जीव नो संज्ञी - नो असंज्ञी के समान है। (६) दृष्टि द्वार
सम्यग्दृष्टि अनाहारक जीव के समान हैं। मिथ्यादृष्टि आहारक जीव के समान हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर (एकवचन) से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है।
बहुवचन से वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। (७) संयत द्वार
संयत जीव और मनुष्य आहारक जीव के समान हैं। असंयत भी उसी प्रकार हैं। संयतासंयत भी उसी प्रकार हैं। विशेष-जिसके जो भाव हो वह कहना चाहिए। नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत का कथन नो भवसिद्धिकनो अभवसिद्धिक के समान कहना चाहिए। कषाय द्वारसकषायी से लोभकषायी पर्यन्त सभी स्थान आहारक जीव के समान हैं। अकषायी जीवपद और सिद्धपद में चरम नहीं हैं, अचरम हैं।
मनुष्यपद में कदाचित् चरम हैं और कदाचित् अचरम हैं। (९) ज्ञान द्वार
ज्ञानी सर्वत्र सम्यग्दृष्टि जीव के समान हैं। आभिनिबोधिक ज्ञानी से मनःपर्यवज्ञानी पर्यन्त आहारक जीव के समान हैं। विशेष-जिसके जो ज्ञान हो वह कहना चाहिए। केवलज्ञानी का कथन नो संज्ञी-नो असंज्ञी के समान है। अज्ञानी से विभंगज्ञानी पर्यन्त का कथन आहारक
के समान है। (१०) योगद्वार
सयोगी से काययोगी पर्यन्त का कथन आहारक के समान है। विशेष-जिसके जो योग हो वह कहना चाहिए।
अयोगी का कथन नो संज्ञी-नो असंज्ञी के समान है। (११) उपयोग द्वार
साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी का कथन अनाहारक के समान है।
(१०) जोग दारं
सजोगी जाव कायजोगी जहा आहारओ। णवरं-जस्स जो जोगो अत्थि।
अजोगी जहा नो सण्णी-नोअसण्णी। (११) उवओग दारं
सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तोय जहा अणाहारओ।