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चरमाचरम अध्ययन
सूत्र
४४. चरिमाचरिमज्झयणं
(जीवाणं चरिमाचरिमत्तं)
१. धरिमाचरिमलक्खणं
गाहा - जो जं पाविहिइ पुणो, भावं सो तेण अचरिमो होइ । अच्चतवियोगो जस्स, जेण भावेण सो चरिमो ||
- विया. स. १८, उ. १, सु. १०३
२. एगत्त-पुहत्त विवक्खया जीव-चउवीसदंडएसु गइआइ एक्कारस्सदारेहिं चरिमा-चरिमत्त परूवणं
१. गई २. ठिई, ३ . भवे य, ४. भासा, ५. आणापाणु चरिमे य बोधव्वे |
६. आहार, ७. भाव चरिमे ८. यण्ण, ९. रसे, १०, गंध, ११. फासे य ॥ - पण्ण. प. १०, सु. ८२९, गा. १
(१) गई दार
प. १ (क) जीवेण भंते! गइ चरिमेणं किं चरिमे, अधिरमे ?
उ. गोयमा सिय चरिमे, सिय अचरिमे,
प. दं. १ (ख) नेरइए णं भंते! गहचरिमेणं किं चरिमे, अचिरमे ?
उ. गोयमा ! सिय चरिमे, सिय अचरिमे,
दं. २ २४ एवं निरंतर जाव मानिए.
प. दं. १ (ग) नेरइया णं भंते ! गइचरिमेणं किं चरिमा, अचरिमा ?
उ. गोयमा ! चरिमा वि. अचरिमा वि
दं. २ २४ एवं निरंतरं जाव वैमाणिया,
1
(२) ठिई दारं
प. दं. १ णेरइए णं भंते ! ठिई चरिमेणं किं चरिमे, अचरिमे ?
उ. गोयमा सिय चरिमे सिय, अचरिमे।
६. २-२४ एवं णिरंतरं जाव बेमाणिए ।
प. दं. १ णेरड्या णं भंते । ठिई धरिमेण किं चरिमा, अचरिमा ?
उ. गोयमा चरिमा वि, अचरिमा वि
दं. २ २४ एवं निरंतरं जाव बेमाणिया ।
(३) भव दारं
प. दं. १ नेरइए णं भंते ! भवचरिमेणं किं चरिमे, अचरिमे ?
सूत्र
४४. चरमाचरम अध्ययन
(जीवों का चरमाचरमत्व)
१. चरमाचरम का लक्षण
गाथार्थ - जो जीव जिस भाव को पुनः प्राप्त करेगा, वह उस भाव की अपेक्षा से अचरम होता है, जिस जीव का जिस भाव के साथ सर्वथा वियोग हो जाता है, वह उस भाव की अपेक्षा चरम होता है।
२. एकत्व बहुत्व की विवक्षा से जीव-चौबीस दंडकों में गति आदि ग्यारह द्वारों से चरमाचरमत्व का प्ररूपण
उ.
प्र.
१. गति, २. स्थिति, ३. भव, ४ भाषा, ५. आनपान (श्वासोच्छ्वास)
६. आहार, ७. भाव चरम, ८. वर्ण, ९. रस, १०. गन्ध और ११. स्पर्श,
( इन ग्यारह द्वारों की अपेक्षा चरम- अचरम की प्ररूपणा करनी चाहिए।)
(१) गति द्वार
प्र.
१७०९
(२)
प्र.
१ (क) भंते ! जीव (गतिचरम की अपेक्षा से) चरम है या अचरम है ?
गौतम ! कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है।
दं. १ (ख) भंते ! (एक) नैरयिक (गतिचरम की अपेक्षा से) चरम है या अचरम है ?
उ. गौतम ! कथंचित् चरम है और कचित् अचरम है।
दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक देव पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. दं. १ (ग) भंते ! (अनेक) नैरयिक (गतिचरम की अपेक्षा से) चरम हैं या अचरम हैं ?
उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं।
दं. २-२४ इसी प्रकार निरन्तर (अनेक) वैमानिक देवों पर्यन्त कहना चाहिए।
स्थिति द्वार
दं. १. भंते ! (एक) नैरयिक स्थिति चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ?
उ.
गौतम ! वह कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। दं. २- २४ इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक देव पर्यन्त कहना चाहिए।
प्र. दं. १. भंते ! ( अनेक) नैरयिक स्थिति चरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ?
उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं।
दं. २-२४ इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक देवों पर्यन्त कहना चाहिए।
(३) भव द्वार
प्र.
दं. १. भंते! (एक) नैरयिक भव चरम की अपेक्षा से चरम है। या अचरम है ?