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प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा।
-पण्ण.प.३६, सु. २०९३-२१०० १०. चउवीसदंडयाणं चउवीसदंडएसु एगत्तपुहत्तेहिं अतीत-
अणागय समुग्घाय परूवणं१. वेयणा समुग्घाएपं. दं.१.एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया
वेयणासमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि।
जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा,अणंता वा। एवं असुरकुमारत्तेजाव वेमाणियत्ते।
प. द. २. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स जेरइयत्ते
केवइया वेयणासमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइणत्थि।
द्रव्यानुयोग-(३) ) प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! कदाचित् संख्यात होने वाले हैं और कदाचित्
असंख्यात होने वाले हैं। १०. चौबीस दंडकों का चौवीस दंडकों में एकत्व बहुत्व द्वारा
अतीत-अनागत्व समुद्घातों का प्ररूपण१. वेदना समुद्घातप्र. दं.१. भंते ! एक-एक नैरयिक के नारक पर्यायों में रहते हुए
कितने वेदनासमुद्घात व्यतीत हुए हैं। उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! वे किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने
वाले हैं। जिसके होने वाले हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन होने वाले हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होने वाले हैं। इसी प्रकार नैरयिक के असुरकुमार पर्याय से वैमानिक पर्याय में रहते हुए (अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात) जानना
चाहिए। प्र. दं.२. भंते ! एक-एक असुरकुमार के नारक पर्याय में रहते ___ हुए कितने वेदनासमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने
वाले हैं, जिसके होने वाले हैं उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित्
असंख्यात और कदाचित् अनन्त होने वाले हैं। प्र. भंते ! एक-एक असुरकुमार के असुरकुमार पर्याय में रहते
हुए कितने वेदनासमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने
वाले हैं। जिसके होने वाले हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होने वाले हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होने वाले हैं। दं. ३-२४. इसी प्रकार नागकुमारपर्याय से वैमानिकपर्याय पर्यन्त में रहते हुए अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात समझने चाहिए। जिस प्रकार असुरकुमार के नारकपर्याय से वैमानिक पर्याय पर्यन्त वेदनासमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार शेष नागकुमार आदि भी स्वस्थानों और पर स्थानों में वैमानिक पर्याय पर्यन्त कहने चाहिए यावत् वैमानिक भी वैमानिक पर्याय पर्यन्त जानने चाहिए। इसी प्रकार ये चौबीस दण्डकों में प्रत्येक के चौबीस दण्डक होते हैं।
जस्सऽस्थि तस्स सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय
अणंता। प. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते
केवइया वेयणासमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि।
जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा,दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। दं.३-२४.एवं णागकुमारत्ते विजाव वेमाणियत्ते।
एवं जहा वेयणासमुग्घाएणं असुरकुमारे णेरइयाइवेमाणिय-पज्जवसाणेसु भणिए तहा णागकुमारादिया अवसेसेसु सट्ठाण-परहाणेसुभाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते।
एवमेए चउव्वीसंचउव्वीसा दंडगा भवंति।