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आत्मा अध्ययन
१६७७
मइअन्नाणे जाव विभंगनाणे, आहारसन्नाए जाव मेहुणसन्नाए, ओरालियसरीरे जाव कम्मग सरीरे, एवं मणोजोए,वइजोए,कायजोए, सागारोवयोगे अणागारोवयोगे,
वट्टमाणस्स अन्ने जीवे,अन्ने जीवाया। प. से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! ज णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छंते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि
मति अज्ञान यावत् विभंगज्ञान में, आहारसंज्ञा यावत् मैथुन संज्ञा में, औदारिक शरीर यावत् कार्मण शरीर में, मनोयोग, वचनयोग और काययोग में, साकारोपयोग और अनाकारोपयोग में,
प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा पृथक् है। प्र. वे इस प्रकार कैसे कहते हैं ? उ. गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं यावत् वे मिथ्या
कहते हैं। (किन्तु) गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ"प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में प्रवर्तमान प्राणी ही जीव और वही जीवात्मा है यावत् अनाकारोपयोग में प्रवर्तमान प्राणी ही जीव है और वही जीवात्मा है।"
"एवं खलु पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स से चेव जीवे, से चेव जीवाया जाव अणागारोवयोगे वट्टमाणस्स से चेव जीवे, से चेव जीवाया।"
-विया. स. १७, उ.२, सु. १७ ६. पाणाइवायाईणं आय परिणामित्त परूवणंप. अह भंते ! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले,
पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, उप्पत्तिया जाव पारिणामिया, उग्गहे जावधारणा, उट्ठाणे जाव पुरिसक्कारपरक्कमे, नेरइयत्ते,असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्ममिच्छदिट्ठी, चक्खुदंसणे जाव केवलदंसणे, आभिणिबोहियाणाणे जाव विभंगनाणे, आहारसन्ना जाव मेहुणसन्ना, ओरालियसरीरे जाव कम्मगसरीरे, मणोजोए, वइजोए, कायजोए, सागारोवयोगे,अणागारोवयोगे, जे यावऽन्ने तहप्पगारा सव्वे ते णऽन्नत्थ आयाए
परिणमंति? उ. हता, गोयमा ! पाणाइवाए जाव अणागारोवयोगे जे यावऽन्ने तहप्पगारा सव्वे ते णऽन्नत्थ आयाए परिणमंति।
-विया. स.२०, उ. ३, सु.१ ७. दवियाइ अट्ठ आयाणं परोप्परं सहभाव परूवणंप. जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स कसायाया, जस्स
कसायाया तस्स दवियाया?
६. प्राणातिपातादि के आत्म परिणामित्व का प्ररूपणप्र. भन्ते ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक,
औत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी बुद्धी, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान यावत् पुरुषाकार पराक्रम, नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन, आभिनिबोधिकज्ञान यावत् विभंगज्ञान, आहारसंज्ञा यावत् मैथुनसंज्ञा, औदारिक शरीर पावत् कार्मण शरीर, मनोयोग, वचनयोग, काययोग तथा साकारोपयोग एवं अनाकारोपयोग ये और इनके जैसे और क्या आत्मा के सिवाय अन्यत्र
परिणमन नहीं करते? उ. हाँ, गौतम ! प्राणातिपात यावत् अनाकारोपयोग पर्यन्त ये सब
और इसी प्रकार के अन्य भी आत्मा के सिवाय अन्यत्र
परिणमन नहीं करते। ७. द्रव्यात्मादि आठ आत्माओं के परस्पर सहभाव का प्ररूपणप्र. भन्ते ! जिसके द्रव्यात्मा होती है क्या उसके कषायात्मा होती
है और जिसके कषायात्मा होती है क्या उसके द्रव्यात्मा __ होती है? उ. गौतम ! जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके कषायात्मा कदाचित्
होती है और कदाचित् नहीं होती है, किन्तु जिसके कषायात्मा होती है उसके द्रव्यात्मा निश्चित होती है।
उ. गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय
नत्थि,जस्स पुण कसायाया तस्स दवियाया नियम अत्थि।