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१६५२ ५४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु सण्णिपंचिंदिय
तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो
उववज्जति किसंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, असंखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय
तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदिय तिरिक्ख
जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति।
प. भंते ! जइ संखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय
तिरिक्खजोणिएहिंतो उववति किंपज्जत्त-संखेज्जवासाउय उववजंति, अपज्जत्त
संखेज्जवासाउय उववज्जति? उ. गोयमा ! दोहिं वि उववज्जति।
प. संखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं
तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववति ? उ. गोयमा ! अवसेसं सव्वा वत्तव्यया जहा एयस्स चेव
पुढवीकाए उववज्जमाणस्स पढमगमए भणिया।
द्रव्यानुयोग-(३) ५४. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या, वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न
नहीं होते हैं। प्र. भन्ते ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) संख्यात वर्षायुष्क
संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्यावे पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्कों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त
संख्यातवर्षायुष्कों से उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे दोनों (पर्याप्तक और अपर्याप्तक) से ही उत्पन्न .. होते हैं। प्र. भन्ते ! यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जो पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वालों में और उत्कृष्ट
तीन पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है। प्र. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! शेष समग्र कथन पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने वाले संज्ञी
पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों के प्रथम गमक के समान करना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो उसका भी कथन प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है (यह द्वितीय गमक है) वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो जघन्य तीन पल्योपम की स्थिति वालों में और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है। उसका भी कथन प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-परिमाण में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं।
णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडी पुहत्तमब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालठ्ठिईएस उववण्णो, एसा चेव पढम गमग सरिसा वत्तव्वया णेयव्वा, .
णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाओ। एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं तिपलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा।
एसा चेव पढम गमग सरिसा वत्तव्यया, णवर-परिमाणं जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति।