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गम्मा अध्ययन
भवादेसेणं-दो भवग्गहणाई। कालादेसेणं-जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई अंतोमुत्तममहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं काल गतिरागतिं करेज्जा। (तइओ गमओ) सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउएसु उववज्जेज्जा।
सेसं जहा एयस्स चेव सण्णिपंचिंदियस्स पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु वत्तव्वया, सच्चेव इह वि मज्झिमेसु तिसुगमएसुणेयव्वा। णवरं-उववाय ठिई संवेहो य उवउंजिऊण भाणियव्यो तिसु गमएसु। (चउत्थ-पंचम-छट्ठ गमा) सो चेव अप्पणा उक्कोस कालट्ठिईओ जाओ सच्चेव पढमगमग वत्तव्वया भाणियव्या,
णवरं-ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तममहिया, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियाई।(सत्तमो गमओ)
- १६५३ ) भवादेश से-दो भव ग्रहण करता है। कालादेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है (यह तृतीय गमक है) वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य हो तो वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है। पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक के मध्य के तीन (४-५-६) गमक के समान यहाँ भी मध्य के तीन गमक (४-५-६) जानने चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संवेध तीनों गमकों में उपयोग लगाकर कहना चाहिए। (यह चौथा पांचवा छट्ठा गमक है) वही (संज्ञी) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च (स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो उसका समग्र कथन प्रथम गमक के समान करना चाहिए। विशेष-स्थिति और अनुबन्ध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष, उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष कहना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह सातवां गमक है) वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन्न हो तो उसका कथन भी इसी प्रकार सप्तम गमक के समान करना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह आठवां गमक है) वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में) उत्पन्न होतो वह जघन्य तीन पल्योपम और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता है। शेष सब कथन सप्तम गमक के समान कहना चाहिए। विशेष-परिमाण-उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। भवादेश से-दो भव ग्रहण करता है। कालादेश से-जघन्य पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह नौवां गमक है)
सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो, एसा चेव सत्तम गमग वत्तव्वया,
णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (अट्ठमो गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। अवसेसं सत्तम गमग सरिसा वत्तव्वया भाणियव्या। णवर-परिमाणं-उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जेज्जा। भवादेसेणं-दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं-जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं, पुव्वकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (नवमो गमओ)
-विया. स. २४, उ.२०,सु.२९-३८ ५५. पंचिंदिय तिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु असण्णि मणुस्साणं
उववायाइ वीसंदारं परूवणंप. भंते ! जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति-किं सण्णि
मणुस्सेहिंतो उववज्जति, असण्णिमणुस्सेहितो उववति ?
५५. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्यों
के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) मनुष्यों से आकर उत्पन्न
होते हैं तो क्या संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?