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गम्मा अध्ययन
सम्मदिट्ठी, नो मिच्छदिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी।
नाणी, नो अण्णाणी, नियमं तिण्णाणी,तं जहा
१. आभिणिबोहियनाणी, २. सुयनाणी, ३. ओहिनाणी। ठिई जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। भवादेसेणं-जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं चत्तारि भवग्गहणाई। कालादेसेणं-जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाई वासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावठि सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (पढमो गमओ) एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, णवर-ठिई अणुबंध संवेधं च उवउंजिऊण
जाणेज्जा ।(१-९) प. सव्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु
उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु
उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सा चेव विजयादिदेव वत्तव्वया भाणियव्वा,
१६६३ वे सम्यग्दृष्टि होते हैं किन्तु मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले होते हैं, यथा१. आभिनिबोधिक ज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान। उनकी स्थिति जघन्य इकतीस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है। भवादेश से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट चार भव ग्रहण करते हैं। कालादेश से-जघन्य वर्ष पृथक्त्व अधिक इकतीस सागरोपम
और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक छयासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करते हैं और इतने ही काल तक गमनागमन करते हैं। (यह प्रथम गमक हुआ।) इसी प्रकार शेष आठ गमक कहने चाहिए। विशेष-इनके स्थिति, अनुबंध और संवेध उपयोगपूर्वक
भिन्न-भिन्न जानने चाहिए। (१-९) प्र. भंते ! सर्वार्थसिद्ध देव जो मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य है तो
भंते ! वे कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न
होते हैं? उ. गौतम ! वही विजयादि देव सम्बन्धी समग्र कथन यहां भी
कहना चाहिए। विशेष-इनकी स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। अनुबंध भी इतना ही है। भवादेश से-दो भव ग्रहण करता है। कालादेश से-जघन्य वर्ष पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम
और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) वही (सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव) जघन्य काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न हो तो उसके लिए भी यही प्रथम गमक के अनुसार कथन करना चाहिए। विशेष-कालादेश से-जघन्य वर्ष पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी वर्ष पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह द्वितीय गमक है) वही (सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न हो तो उसके लिए भी यही प्रथम गमक के अनुसार कथन करना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है) यहां पर ये ही तीन गमक होते हैं,शेष छह गमक नहीं होते हैं।
णवर-ठिई अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
एवं अणुबंधो वि। भवादेसेणं-दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं-जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई वासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(१ पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो, एसा चेव वत्तव्वया पढम गमग सरिसा भाणियव्वा,
णवरं-कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई वासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (२ बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, एसा घेव पढमगमग वत्तव्वया भाणियव्या।
णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई,उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(तइओ गमओ) एए चेव तिण्णि गमगा भवंति, सेसा छ गमगान भवंति।
-विया.स.२४, उ.२१,सु.२०-२७ ।