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गम्मा अध्ययन
णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (२ बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेण तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा।
अवसेसा सच्चेव पढम गमग वत्तव्वया। णवरं-ओगाहणा-जहण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई। ठिई-जहण्णेणं मासपुहत्तं,उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
एवं अणुबंधो वि। . भवादेसेणं-दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं-जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं मासपुहत्तमब्महियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(३ तइओ गमओ) - सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, जहा एयस्स चेव पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु वत्तव्वया भणिया इह वि निरवसेसा भाणियव्या।
१६५५ विशेष-कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह दूसरा गमक है) वही (संज्ञी मनुष्य) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य तीन पल्योपम की स्थिति वालों में और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है। शेष कथन प्रथम गमक के समान करना चाहिए। विशेष-अवगाहना-जघन्य अंगुल पृथक्त्व और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की होती है। स्थिति-जघन्य मास पृथक्त्व (अनेक मास) और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी स्थिति के समान होता है। भवादेश से-दो भव ग्रहण करता है। कालादेश से-जघन्य मासपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है) वही (संज्ञी मनुष्य) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो
और संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो जिस प्रकार पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के मध्य के तीन गमक (४-५-६) कहे गये हैं उसी प्रकार यहाँ भी मध्य के तीन गमक का सम्पूर्ण कथन करना चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक कहना चाहिए (यह चौथा-पाँचवां-छट्ठा गमक है) वही (संज्ञी मनुष्य) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो
और संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हो तो उसके लिए प्रथम गमक के समान कथन करना चाहिए। विशेष-शरीर की अवगाहना जघन्य पांच सौ धनुष, उत्कृष्ट भी पाँच सौ धनुष , स्थिति और अनुबन्ध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष है। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि वर्ष उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व (सात करोड़ पूर्व) अधिक तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह सातवां गमक है) वही (संज्ञी मनुष्य) जघन्यकाल की स्थिति वालों में उत्पन्न हो तो उसका कथन भी इसी प्रकार सातवें गमक के समान है। विशेष-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि वर्ष
और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह आठवां गमक है) । यदि संज्ञी मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है तो जघन्य तीन पल्योपम की स्थिति वालों में और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है।
णवरं-उववायं ठिइं संवेहं च उवउंजिऊण भाणियव्वं। (४-६ चउत्थ-पंचम-छट्ठ गमा) सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ, सच्चेव पढमगमग वत्तव्यया,
णवरं-ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणुसयाई। ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(७ सत्तमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो, एसा चेव सत्तम गमग सरिसा वत्तव्वया, णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (८ अट्ठमो गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाइं,