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गम्मा अध्ययन
४४. तेउक्काइए उववज्जतेसु दस दंडगाणं उववायाइ वीसं दारं
परूवणंप. तेउक्काइया णं भंते ! कओहिंतो उववजंति,
किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
उ. गोयमा ! पुढविक्काइयउद्देसग सरिसा दस दंडगाणं नव
गमग वत्तव्वया सव्वा भाणियव्या, णवरं-उववाय ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा।
देवेहितो न उववज्जति। मणुस्सेहिंतो उववज्जमाणस्स भवादेसेणं दो भवग्गहणाई।
-विया. स. २४, उ0 १४, सु.१ ४५. वाउक्काइए उववजंतेसु दस दंडगाणं उववायाइ वीसं दारं
परूवणंप. वाउक्काइया णं भंते ! कओहिंतो उववजंति
किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति?
उ. गोयमा ! जहेव तेउक्काइय उदेसओ भणियो तहेव इह वि
दस दंडगाणं नव गमग वत्तव्वया सव्वा भाणियव्वा। णवरं-उववाय ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा।
. -विया. स. २४, उ.१५,सु.१, ४६. वणस्सइकाइए उववज्जतेसु तेवीसदंडगाणं उववायाइ वीसं
दारं परूवणंप. वणस्सइकाइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति
किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति?
- १६४५ ) ४४. तेजस्कायिकों में उत्पन्न होने वाले दस दंडकों के उपपातादि
बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! तेजस्कायिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं?
क्या नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! यहाँ भी पृथ्वीकायिक उद्देशक के समान दस
औदारिक दंडकों के नौ गमकों का संपूर्ण कथन करना चाहिए। विशेष-इनका उपपात, स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक समझना चाहिये। (तेजस्कायिक जीव) देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। मनुष्यों से आकर उत्पन्न होने वाले तेजस्कायिक भवादेश से दो
भव ही ग्रहण करते हैं ४५. वायुकायिकों में उत्पन्न होने वाले दस दंडकों के उपपातादि
बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! वायुकायिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? ___ क्या नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! तेजस्कायिक उद्देशक के समान दस दंडकों के नी
गमकों का समग्र कथन करना चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक जानना
चाहिए। ४६. वनस्पतिकायिकों में उत्पन्न होने वाले तेवीस दंडकों के
उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! वनस्पतिकायिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
क्या नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! यहाँ पृथ्वीकायिक उद्देशक के समान तेवीस दंडकों
के नौ गमकों का संपूर्ण कथन करना चाहिए। विशेष-जब वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं तब पहले दूसरे चौथे और पांचवे गमक मेंपरिमाण-प्रतिसमय निरंतर अनंत उत्पन्न होते हैं। भवादेश से-वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट अनन्त भव ग्रहण करते हैं। कालादेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, इतना समय व्यतीत करते हैं और इतने ही काल तक गमनागमन करते हैं। शेष पांच गमकों में आठ भव पृथ्वीकाय के समान कहने चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक जानना
चाहिए। ४७. द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले दस दंडकों के उपपातादि बीस
द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! पृथ्वीकाय के समान उपपात जानना चाहिए।
उ. गोयमा ! पुढविक्काइय उददेसग सरिसा तेवीस दंडगाणं
नव गमग वत्तव्वया सव्वा भाणियव्या। णवर-जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जति ताहे पढम-बिइय-चउत्थ-पंचमेसु गमएसुपरिमाणं-अणुसमयं अविरहिय अणंता उववज्जति। भवादेसेणं-जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अणंताई भवग्गहणाई। कालादेसेणं-जहण्णेणं दो अंतोमहत्ता, उक्कोसेणं अणंतं कालं, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव पुढवी सरीसा भाणियव्वा। णवर-उववाय ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा।
-विया. स. २४, उ.१६, सु.१ ४७. बेइंदिए उववज्जतेसु दस दंडगाणं उववायाइ वीसं दारं
परूवणंप. बेइंदिया णं भंते !कओहिंतो उववति? उ. गोयमा ! जहेव पुढवीकाइए उववाओ तहा जाणेज्जा ।