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णवर बेदिया दस दंडगाओ उववज्जति।
प. पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए बेंइदिएसु उववज्जित्तए, से भंते! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तेसु उववज्जेज्जा, उक्कोसेणं दुबालसवासठिइएस उववज्जेजा।
सेसं पुढविकाइय सरिसा दस दण्डगाणं नव गमग वत्तव्या भाणियव्या
णवरं - चउसु गमएसु उक्कोसेणं संखेज्जाई भवग्गहणाई, कालादेसेणं-उक्कोसेण संखेज् कालं, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागति करेज्जा । उपवाय ठिई संवेहो सव्वत्य उवउंजिऊण भाणियच्यो । -विया. स. २४, उ. १७, सु. १-२ ४८. तेइंदिए उववज्जंतेसु दस दंडएसु उववायाइ वीसं दारं परूवणं
तेइंदियाणं सव्वा लद्धी बेइं दिए उद्देसग सरिसा दस दंडगाणं नवसु वि गमएस भाणियव्या ।
णवरं - उववाय ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा, तं जहा
तेउक्काइएसु समं तइयगमे उक्कोसेणं अदुत्तराई बेराइंदियसयाई,
बेइदिएहिं समं तइयगमे उक्कोसेणं अडयालीसं संवच्छराई छन्नउयराइंदियसयमब्भहियाई,
तेइदिएहिं समं तइयगमे उक्कोसेणं बाणउयाइं तिण्णि राइदियसवाई। - विया. स. २४, उ. १८, सु. १ ४९. चउरिंदिय उववज्जंतेसु दस दंडगाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणं
जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहेब चउरिदिय उद्देसओ वि भाणियव्यो।
नवर-उपवाय ठिई संवेहं च उपजिऊण जाणेज्जा । -विया. स. २४, उ. १९, सु. १,
५०. गई पहुंच्य पचिदिय तिरिक्खजोणिय उबवाय परूवणं
प. पंचिदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति - किं नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, देवेहिंतो उववति ?
उ. गोयमा । नेरइएहिंतो वि उववज्जति तिरिक्खजोणि
एहिंतो वि उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, देवेहिंतो वि उवज्र्ज्जति । - विया. स. २४, उ.२०, सु. १, ५१. पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय उववज्जंतेसु नेरइयाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणं
प. भंते! जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति
द्रव्यानुयोग - (३)
विशेष- वे बेइन्द्रिय दस दंडकों से आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते पृथ्वीकायिक जीव जो द्वीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वे कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम जघन्य अंतर्मुहूर्त की स्थिति में उत्कृष्ट बारह वर्ष की स्थिति में उत्पन्न होते हैं ।
शेष समग्र कथन पृथ्वीकाय के समान दस दंडकों के नौ गमकों का यहाँ भी कथन करना चाहिए।
विशेष- चारों गमकों में उत्कृष्ट संख्यात भव ग्रहण करते हैं।
कालादेश से उत्कृष्ट संख्यात काल व्यतीत करते हैं और इतने ही काल तक गमनागमन करते हैं।
उपपात स्थिति और संवेध सभी गम्मों में उपयोग पूर्वक कहना चाहिए।
४८. त्रीन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले दस दंडकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण
द्वीन्द्रिय-उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी दस दंडकों के नी-नी गम्मों का संपूर्ण कथन करना चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संबंध उपयोग पूर्वक जानना चाहिए. यथा
तेजस्कायिकों के साथ (त्रीन्द्रियों का संवेध) तीसरे गमक में उत्कृष्ट दो सो आठ रात्रि दिवस है।
द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट एक सौ छिनवें (१९६) रात्रि दिवस अधिक अड़तालीस वर्ष है।
त्रीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट तीन सौ बराणवे (३९२) रात्रि दिवस है।
४९. चतुरिन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले दस दंडकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण
जिस प्रकार श्रीन्द्रिय-उद्देशक कहा है उसी प्रकार चतु न्द्रिय उदेशक भी कहना चाहिए।
विशेष-उपपात स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक जानना चाहिए।
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५०. गति की अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपात का प्ररूपण
प्र. भंते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या नैरयिकों में से आकर तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं या देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! वे नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न होते हैं तथा देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं।
५१. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले नैरयिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण
प्र. भंते! यदि वे (पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक) नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो