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गम्मा अध्ययन
कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई दोहि अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (१ पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो, सच्चेव पढम गमग वत्तव्वया भवादेसपज्जवसाणा भाणियव्वा।
१६१५ कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम, उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है)
कालादेसेणं जहण्णेणं उक्कोसेण वि तहेव।
एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (२ बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, सच्चेव लद्धी।
वही संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च सप्तम नरक की जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न होने योग्य है, इत्यादि समग्र कथन भवादेश पर्यन्त प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट काल भी प्रथम गमक जितना ही जानना चाहिए। इतना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह दूसरा गमक है) वह जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो इत्यादि समग्र कथन प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। विशेष-भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव ग्रहण करता है। कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहुर्त अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है)
णवरं-भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई,एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (३ तइओ गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, सच्चेव रयणप्पभापुढविजहण्णकालट्ठिईयवत्तव्यया भवादेसं पज्जवसाणा भाणियव्या।
णवरं-पढमं संघयणं, नो इत्थिवेदगा।
वही (संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जीव जघन्य स्थिति वाला हो
और सप्तम नरक पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो इत्यादि समस्त कथन रलप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य जघन्य स्थिति वाले (संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) के समान भवादेश पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-प्रथम संहननी (ही उत्पन्न) होता है, स्त्रीवेदी उत्पन्न नहीं होता है। भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव ग्रहण करता है। कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (वह चौथा गमक है)
भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (४ चउत्थो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो, एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो कालादेसं पज्जवसाणो भाणियव्यो।(५ पंचमो गमओ)
सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएस उववण्णो, सच्चेव लद्धी जहा चउत्थे गमए।
वही जघन्य स्थिति (वाला संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न होने योग्य हो इत्यादि समग्र कथन चतुर्थ गमक के समान कालादेश पर्यन्त कहना चाहिए (यह पांचवा गमक है।) वही (जघन्य स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरक पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो इत्यादि (समग्र कथन) चौथे गमक के समान है। विशेष-भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव ग्रहण करता है,
णवरं-भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई,