________________
गम्मा अध्ययन
१६१३
ठिई जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पूव्वकोडी।
एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा (७ सत्तमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्स
ट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भवादेसं
पज्जवसाणो भाणियव्यो। कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवइयं कालं सेवेज्जा,
एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(८ अट्ठमो गमओ) प. उक्कोसकालट्ठिईयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि
पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं
भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि
सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति? उ. गोयमा ! सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भवादेसं
पज्जवसाणो भाणियव्यो।। कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (९ नवमो गमओ) एवं एए नव गमगा। उक्खेव-निक्खेवओ नवसु वि गमएसु जहेव असण्णीणं।'
-विया.स. २४, उ.१, सु.५१-७६ ५. सक्करप्पभाइ तमापुढवि नरयउववज्जतेसु पज्जत्त सन्नि
संखेज्ज वासाउय पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएस उववायाइ वीस दारं परूवणंप. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए
णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवइयकालट्ठिईएसु
उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमट्ठिईएसु, उक्कोसेणं
तिसागरोवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा।
स्थिति जघन्य भी पूर्वकोटि वर्ष की है और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष की है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी स्थिति के समान है। कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कष्ट चार पूर्व कोटि अधिक चार सागरोपम काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह सातवां गमक है) यदि वही जघन्य स्थिति वाले (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हो तो जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट भी दस हजार
वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (परिमाण से) भवादेश पर्यन्त सम्पूर्ण सातवें गमक
के अनुसार कहना चाहिए। कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन
करता है। (यह आठवां गमक है) प्र. भंते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क
संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने काल की
स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट भी एक
. सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम! भवादेश पर्यन्त वही सप्तम गमक सम्पूर्ण कहना
चाहिए। कालादेश से जघन्य पूर्वकोटि अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह नौवा गमक है) इस प्रकार ये नौ गमक हैं और इनके असंज्ञी जीवों के गमकों के समान प्रश्नोत्तर आदि कहने चाहिए।
५. शर्कराप्रभा से तमः प्रभापृथ्वी पर्यन्त नरक में उत्पन्न होने वाले
पर्याप्त संज्ञी संख्यात वर्षायुष्क पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक में उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक
जीव शर्कराप्रभापृथ्वी में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न
होता है? उ. गौतम! वह जघन्य एक सागरोपम की स्थिति वाले और
उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न
होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति?