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गम्मा अध्ययन
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पण
सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएस उववण्णो जहण्णेणं
वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) उत्कृष्ट तिपलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिपलिओवमाई, सेसा तं
काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो जघन्य तीन चेव सत्तम गमग वत्तव्वया।
पल्योपम और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न
होता है शेष कथन सप्तम गमक के समान है। णवरं-कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाई, उक्कोसेण
विशेष-कालादेश से जघन्य छः पल्योपम और उत्कृष्ट भी छह वि छप्पलिओवमाइं, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं
पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल गतिरागतिं करेज्जा (९ नवमो गमओ)
तक गमनागमन करता है। (यह नौवाँ गमक है) -विया. स.२४, उ.२,सु.५-१६ १४. असुरकुमारोववज्जतेसु संखेज्जवासाउय सन्निपंचिंदिय- १४. असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्षायुष्क तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणं
संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उत्पातादि बीस द्वारों का
प्ररूपणप. भंते! जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- प्र. भंते ! यदि असुरकुमार संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी जोणिएहिंतो उववज्जति-किं जलचरेहिंतो उववज्जति
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों इच्चेवं वत्तव्वया पढमुद्देसग सरिसा।
से आकर उत्पन्न होते हैं इत्यादि कथन प्रथम (नैरयिक)
उद्देशक के समान है। प. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए प्र. भंते ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं
जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा?
काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएस, उक्कोसेणं उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और साईरेगसागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा।
उत्कृष्ट सातिरेक एक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों
में उत्पन्न होता है। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जति?
प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एएसिं रयणप्पभापुढविगमगसरिसा वि नव उ. गौतम ! इनके लिए भी रत्नप्रभापृथ्वी के समान ही नी गमक गमगा नेयव्या,
जानने चाहिए। णवर-जाहे अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ भवइ ताहे तिसु विशेष-जब वह (तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय) स्वयं जघन्य काल की वि गमएसु-चत्तारि लेस्साओ,
स्थिति वाला होता है. तब तीनों ही गमकों में चार लेश्याएँ
होती हैं। अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्पसत्था।
अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते हैं। संवेहो साइरेगेणं सागरोवमेण कायव्वो (१-९)
संवेध कुछ अधिक सागरोपम की स्थिति से कहना -विया.स.२४, उ.२.सु.१७-१८
चाहिए। (१-९) १५. असुरकुमारोववज्जतेसु असंखेज्जवासाउय सन्निमणुस्साणं १५. असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्यातवर्षायुष्क संजी उववायाइ वीसं दारं परूवणं
मनुष्यों में उत्पातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप. भंते ! जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति किं- प्र. भंते ! यदि वे (असुरकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति, असण्णिमणुस्सेहितो
तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी उववज्जंति?
मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति, नो उ. गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी असण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति।
मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प. भंते ! जइ सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति-किं प्र. भंते ! यदि वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति,
संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति?
हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो वि उ. गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उववज्जति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो वि
भी उत्पन्न होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी उववज्जंति।
मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प. असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए प्र. भंते ! असंख्यात वर्ष की आयु-वाला संज्ञी मनुष्य जो
असुरकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते! असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा?
की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है?