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सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स एयस्स जहण्णकालट्टिईयस्स वत्तव्वया भणिया तहेव निरवसेसं भाणियव्वा।(४-६)(चउत्थो,पंचम ,छट्ठ गमा)
द्रव्यानुयोग-(३) वही स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो तो उसके भी तीनों (४-५-६) गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य जघन्य काल की स्थिति वाले असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी तिर्यञ्च के तीनों गमकों के समान समग्र कथन करना चाहिए। (यह चौथा पांचवाँ छठा गमक है।) वही स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले हो और नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो तो उसके भी तीनों (७-८-९) गमक असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चयोनिक युगलिक के तीनों गमकों के समान कहने चाहिए। विशेष-यहाँ नागकुमार की स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक जानना चाहिए। (यह सातवां, आठवां नौवां गमक है)
सो चेव अप्पणा उक्कोसकालटिईओ जाओ, तस्स वि तहेव तिण्णि गमगा भाणियव्वा जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, तिण्णि उक्कोस गमगा भणिया।
णवर-नागकुमारट्ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। (७-९)(सप्तम-अट्ठम-नवम गमा)
__-विया. स. २४, उ.३, सु.५-१० १९. नागकुमारोववज्जतेसु पज्जत्त संखेज्जवासाउयपंचिंदिय-
तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसंदारं परूवणं
प. भंते ! जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख
जोणिएहिंतो उववज्जंतिकि पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति, अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय
सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय, नो अपज्जत्तसंखेज्ज
वासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववति।
प. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए
णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं
भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणाई
दो पलिओवमाई। एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स बत्तव्बया भणिया तहेव इह वि नवसुगमएसु भाणियव्वा।
१९. नागकुमारों में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी
पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! यदि वे (नागकुमार) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क या अपर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते
हैं? उ. गौतम ! वे पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च
योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भंते ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक
जो नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो तो भंते ! वह कितने
काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो
पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है, इसी प्रकार जैसे असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च का कथन किया उसी प्रकार यहाँ भी नी ही गमक कहने चाहिए। विशेष-यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध उपयोग
लगाकर जानना चाहिए। २०. नागकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी
मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! यदि वे (नागकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं,
तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी . मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी
मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य मनुष्यों के समान यहाँ भी समग्र कथन
करना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यातवर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य जो
नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है?
णवर-नागकुमारट्ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। (१-९)
-विया. स. २४, उ.३, सु.११-१२ २०. नागकुमारोववज्जतेसु असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्साणं
उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति-किं
सण्णिमणुस्सेहिंतो उववजंति, असण्णिमणुस्सेहितो
उववज्जति? उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो
असण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति, सेसंतं चेव जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स।
प. असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए
नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा?