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युग्म अध्ययन
१५८३
प. ते णं भंते !जीवा कण्हलेस्सा? - उ. हता, गोयमा ! कण्हलेस्सा। सेसं तहेव।
एवं जहा ओहियसए एक्कारस उदेसगा भणिया तहा कण्हलेस्साए विएक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा।
पढमो, तइओ, पंचमो यसरिसगमा। सेसा अट्ठ विसरिसगमा, णवरं-चउत्थ-अट्ठम-दसमेसु उववाओ नत्थि देवस्स।
-विया. स.३५,२/ए, उ.२-११ एवं नीललेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं, एक्कारस उद्देसगा तहेव। -विया. स. ३५, ३/ए, उ. १-११ एवं काउलेस्से विसयंकण्हलेस्ससयसरिसं।
-विया. स.३५,४/ए, उ.१-११ २६. भवसिद्धिय अभवसिद्धिय महाजुम्म एगिदिएसु उववायाइ
बत्तीसदाराणं परूवणंप. भवसिद्धिय-कडजुम्म-कडजुम्म-एगिंदिया णं भन्ते !
कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा !जहा ओहियसयं तहेव,
णवरं-एक्कारससु वि उद्देसएसुप. अह भन्ते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता भवसिद्धिय
कडजुम्मकडजुम्म-एगिंदियत्ताए उववन्नपुव्वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। सेसं तहेव।
-विया. स.३५, ५/ए, उ.१-११ प. कण्हलेस्स-भवसिद्धिय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिदिया णं
भंते !कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं कण्हलेस्स-भवसिद्धिय-एगिदिएहि वि सयं बिइयसयकण्हलेस्ससरिसंभाणियव्वं ।
-विया. स.३५,६/ए, उ.१-११ एवं नीललेस्स-भवसिद्धिय-एगिदिएहि विसयं।
-विया.स.३५,७/ए, उ.१-११
प्र. भन्ते ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? उ. हाँ गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं, शेष समग्र कथन पूर्ववत्
जानना चाहिए। जिस प्रकार औधिक शतक के ग्यारह उद्देशक कहे हैं उसी प्रकार एकेन्द्रिय कृष्णलेश्यी शतक के भी ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए। प्रथम, तृतीय और पंचम उद्देशक के पाठ एक समान हैं। शेष आठ उद्देशकों के पाठ एक समान हैं। विशेष-चौथे,आठवें और दसवें उद्देशक में देवों की उत्पत्ति का कथन नहीं करना चाहिए। कृष्णलेश्यी शतक के अनुसार नीललेश्यी शतक के भी ग्यारह उद्देशक उसी प्रकार कहने चाहिए। इसी प्रकार कापोतलेश्यी-शतक भी कृष्णलेश्यी शतक के
समान जानना चाहिए। २६.भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक महायुग्म वाले एकेन्द्रियों में
उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहाँ
से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका समग्र कथन औधिकशतक के समान जानना
चाहिए।
विशेष-इनके ग्यारह उद्देशकों में यह भिन्नता हैप्र. भन्ते ! सर्व प्राणी यावत् सर्व सत्व भवसिद्धिक कृतयुग्म
एकेन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
शेष सब कथन पूर्ववत् कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय
जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के शतक का
समग्र कथन कृष्णलेश्या सम्बन्धी द्वितीय शतक के समान कहना चाहिए। इसी प्रकार नीललेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय शतक का कथन भी नीललेश्या-सम्बन्धी तृतीय शतक के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार कापोतलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों का कथन पूर्वोक्त (चतुर्थ शतक) के कापोतलेश्या के ग्यारह उद्देशकों के समान जानना चाहिए। इस प्रकार ये (५, ६, ७, ८) चारों शतक भवसिद्धिक
एकेन्द्रिय जीवों के हैं और इन चारों शतकों में प्र. भंते ! क्या सर्व प्राण यावत् सर्व सत्व भवसिद्धिक
कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
एवं काउलेस्स-भवसिद्धिय-एगिदिएहि वि तहेव एक्कारसउद्देसगसंजुत्तसयं।
हए।
एवं एयाणि चत्तारि भवसिद्धिएसु सयाणि चउसु वि
सएसुप. अह भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता भवसिद्धिया
कडजुम्म-कडजुम्म एगिंदियत्ताए उववन्नपुव्वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे।
-विया. स. ३५, ८/ए, उ. १-११ जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाई भणियाई एवं अभवसिद्धिएहिं वि चत्तारि सयाणि लेस्सासंजुत्ताणि भाणियव्वाणि (चउसु वि सएसु)
जिस प्रकार भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार शतक कहे, उसी प्रकार लेश्याओं सहित अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भी चार शतक कहने चाहिए। (इन चारों शतकों में भी)