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दं.३-२०.एवं जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया,
णवरं-वणस्सइकाइया जाव असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जंति। सेसंतंचेव। दं.२१. मणुस्सा वि एवं चेव जाव नो आयजसेणं उववज्जति, आयअजसेणं उववज्जति।
प. जइ आयअजसेणं उववज्जति किं आयजसं उवजीवंति,
आयअजसं उवजीवंति?
उ. गोयमा ! आयजसं पि उवजीवंति, आयअजसं पि
उवजीवंति। प. जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा?
उ. गोयमा ! सलेस्सा वि,अलेस्सा वि। प. जइ अलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? उ. गोयमा ! नो सकिरिया, अकिरिया। प. जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव
सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? उ. हंता, गोयमा ! सिझंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।
द्रव्यानुयोग-(३) दं. ३-२०. इसी प्रकार पंचेंद्रियतिर्यञ्चयोनिक पर्यन्त सारा कथन करना चाहिए, विशेष-वनस्पतिकायिक जीव यावत् असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं, शेष सब कथन पूर्व के समान है। दं. २१. मनुष्यों का कथन भी इसी प्रकार वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं पर्यन्त
कहना चाहिए। प्र. यदि वे (मनुष्य) आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या
आत्म-यश से जीवन-निर्वाह करते हैं या आत्म-अयश से
जीवन निर्वाह करते हैं? उ. गौतम ! आत्म-यश से भी जीवन निर्वाह करते हैं और
आत्म-अयश से भी जीवन निर्वाह करते हैं। प्र. यदि वे आत्मयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो सलेश्यी होते - हैं या अलेश्यी होते हैं? उ. गौतम ! वे सलेश्यी भी होते हैं और अलेश्यी भी होते हैं। प्र. यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? उ. गौतम ! वे सक्रिय नहीं होते, किन्तु अक्रिय होते हैं। प्र. यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध
होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? उ. हां, गौतम ! वे उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का
अन्त करते हैं। प्र. यदि वे सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? उ. गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। प्र. यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध
होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं? उ. गौतम ! कितने ही (मनुष्य) उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत्
सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। कितने ही मनुष्य उसी भव में सिद्ध नहीं होते यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते हैं। प्र. यदि वे आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो वे सलेश्यी ____ होते हैं या अलेश्यी होते हैं? उ. गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं, अलेश्यी नहीं होते हैं। प्र. यदि वे सलेश्यी होते हैं तो क्या सक्रिय होते हैं या अक्रिय
होते हैं ? उ. गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। प्र. यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव से सिद्ध होते हैं यावत्
सब दुःखों का अन्त करते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
दं.२२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन
नैरयिकों के समान है। ४१. राशि युग्म-त्र्योजराशि वाले चौवीस दंडकों में उत्पातादि का
प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! राशियुग्म-त्र्योजराशि वाले नैरयिक कहाँ से
आकर उत्पन्न होते हैं ?
प. जइ सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया? उ. गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। प. जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव
सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव
सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति, अत्थेगइया नो तेणेव
भवग्गहणेणं सिझंति जाव नो सव्वदुक्खाणं अतं करेंति। प. जइ आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा?
उ. गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा। प. जइ सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया?
उ. गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। प. जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव
सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? उ. गोयमा ! नो इणढे समठे।
द. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया।
-विया. स. ४१, उ. १, सु.२-११ ४१. रासीजुम्मतेएसु चउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणं
प. दं.१. रासीजुम्मतेओय-नेरइया णं भंते ! कओहिंतो
उववज्जति?