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युग्म अध्ययन
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उ. गौतम ! मिथ्यादृष्टि के अभिलाप से यहां भी अभवसिद्धिक
उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए।
उ. गोयमा ! एवं एत्थ वि मिच्छद्दिट्ठिअभिलावेणं अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा।
-विया. स. ४१, उ. ११३-१४0, सु. १ ४८. कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए रासीजुम्म कडजुम्माइ
चउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणंप. कण्हपक्खिय-रासीजुम्म-कडजुम्म-नेरइया णं भंते !
कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं एत्थ वि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं
उद्देसगा कायव्वा। -विया.स.४१, उ. १४१-१६८,सु. १ प. सुक्कपक्खिय-रासीजुम्म-कडजुम्म-नेरइया णं भंते !
कओहिंतो उववज्जति, उ. गोयमा ! एवं एत्थ वि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीस
उद्देसगा भवंति। एवं एए सव्वे वि छण्णउयं उद्देसगं भवइ रासीजुम्मसय जाव सुक्कलेस्ससुक्कपक्खिय-रासीजुम्म-कडजुम्मकलियोग बेमाणिया जाव जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव अंतं करेंति, नो इणठे समठे। -विया. स.४१, उ.१६९-१९६, सु.१-२
४८. कृष्णपाक्षिक-शुक्लपाक्षिक राशियुग्म कृतयुग्मादि वाले
चौवीस दंडकों में उत्पातादि का प्ररूपणप्र. भंते ! कृष्णपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक
कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! यहां भी अभवसिद्धिक-उद्देशकों के समान अट्ठाईस
उद्देशक कहने चाहिए। प्र. भंते ! शुक्लपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशि-विशिष्ट
नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! यहाँ भी भवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। इस प्रकार राशियुग्मशतक के शुक्ललेश्यी शुक्लपाक्षिक राशियुग्म-कृतयुग्म-कल्योजराशि वाले वैमानिक यदि सक्रिय हैं तो क्या उस भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं, यह अर्थ समर्थ नहीं है पर्यन्त एक सौ छिनवें (१९६) उद्देशक होते हैं।