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युग्म अध्ययन
सेसं तं चैव काउलेस्से वि एवं चेव चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, णवरं नेरइयाणं उदवाओं जहा रयणप्पभाए।
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-विया. स. ४१, उ. ९-१२, सु. १
सेसं तं चैव ।
-विया. स. ४१, उ. १३-१६, सु. १ प. तेउलेस्सरासीजुम्मकडजुम्म असुरकुमारा णं भते ! कओहिंतो उववज्जंति ?
उ. गोयमा ! एवं चेब
णवरं - जेसु तेउलेस्सा अत्थि तेसु भाणियव्वं ।
एवं एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्या । - विया. स. ४१, उ. १७-२०, सु. १ एवं पम्हलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्या । पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं, मणुस्साणं, वेमाणियाण य एएसिं पम्हलेस्सा, सेसाणं नत्थि ।
-विया. स. ४१, उ. २१-२४, सु. १ जहा पम्हलेस्साए एवं सुकलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्या,
वरं मणुस्साणं गमओ जहा ओहिय उद्देसएसु, सेस तं चैव ।
एवं एए छ लेस्सासु चउवीस उद्देसगा भवति । ओहिया चत्तारि ।
सव्वेए अट्ठावीस उद्देसगा भवति ।
-विया. स. ४१, उ. २५-२८, सु. १-२ ४५. भवसिद्धीय रासीजुम्म कडजुम्माइ चउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणं
प भवसिद्धीय रासीजुम्मकडजुम्म नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ?
उ. गोयमा ! जहा ओहिया पढमगा चत्तारि उद्देसगा तहेव निरवसेस एए वि चत्तारि उद्देगा।
प. कण्डलेस्स भवसिद्धीय रासीजुम्मकडजुम्म नेरइया णं भते ! कओहिंतो उबवज्जति ?
उ. गोयमा ! जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा तहा इमे वि भवसिद्धीय कण्हलेस्सेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा ।
एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा।
एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ।
तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा ।
पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ।
सुक्कलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा ।
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शेष सब कथन पूर्ववत् है ।
इसी प्रकार कापोतलेश्या के भी चार उद्देशक कहने चाहिए। विशेष-नैरयिकों का उपपात रत्नप्रभापृथ्वी के समान जानना चाहिए।
शेष कथन पूर्ववत् है।
प्र. भंते ! तेजोलेश्या वाले राशियुग्म कृतयुग्मरूप असुरकुमार कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इसका कथन पूर्ववत् जानना चाहिए।
विशेष जिनमें तेजोलेश्या हो, उन्हीं के लिए जानना चाहिए। इस प्रकार इसके भी कृष्णलेश्या सदृश चार उद्देशक कहने चाहिए।
इसी प्रकार पद्मलेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और वैमानिकों में पद्मलेश्या होती है, शेष में नहीं होती है।
जिस प्रकार पद्मलेश्या के चार उद्देशक कहे उसी प्रकार शुक्ललेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए।
विशेष- मनुष्यों के लिए औधिक उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् है ।
इस प्रकार इन छहाँ लेश्याओं के चौबीस उद्देशक होते हैं। चार औधिक उद्देशक हैं।
ये सभी मिलकर अट्ठाईस उद्देशक होते हैं।
४५. भवसिद्धिकराशियुग्म कृतयुग्मादि वाले चौबीस दंडकों में उत्पातादि का प्ररूपण
प्र. भंते! भवसिद्धिक राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! जिस प्रकार अधिक चार उद्देशक कहे उसी अनुसार इनके भी सम्पूर्ण चारों उद्देशक जानने चाहिए।
प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिकं राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! जिस प्रकार कृष्णलेश्या के चार उद्देशक कहे हैं, उसी प्रकार भवसिद्धिक कृष्णलेश्यी जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए।
इसी प्रकार नीललेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए।
इसी प्रकार कापोतलेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए।
तेजोलेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी अधिक के समान चार उद्देशक जानने चाहिए।
पदमलेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए।
शुक्ललेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के समान चार उद्देशक कहने चाहिए।