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द्रव्यानुयोग-(३) एवं तिसु वि उद्देसएसु।सेसं तं चेव।
इसी प्रकार तीनों उद्देशकों के विषय में समझना चाहिए। शेष -विया. स. ४०, ५/स. पं., उ.१-११ कथन पूर्ववत् है। जहा तेउलेस्सासयंतहा पम्हलेस्सासयं पि।
जिस प्रकार तेजोलेश्याशतक का कथन किया उसी प्रकार
पद्मलेश्या का कथन करना चाहिए। णवरं-संचिट्ठणा जहण्णेणं एक्कं समयं,
विशेष-संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम है। एवं ठिई वि,
स्थिति भी इतनी ही है, णवरं-अंतोमुहुत्तं न भण्णइ। सेसं तं चेव।
विशेष-इसमें अन्तर्मुहूर्त नहीं समझना चाहिए। शेष कथन
पूर्ववत् है। एवं एएसु पंचसु सएसु जहा कण्हलेस्सासए गमओ तहा इस प्रकार इन पांचों शतकों में कृष्णलेश्या शतक के समान नेयव्वो जाव अणंतखुत्तो।
अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं पर्यन्त आलापक जानने चाहिए। -विया. स. ४०,६/स.पं., उ.१-११ सुक्कलेस्ससयं जहा ओहियसयं,
शुक्ललेश्याशतक भी औधिक शतक के समान है। णवरं-संचिट्ठणा ठिई य जहा कण्हलेस्सासए।
विशेष-इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति कृष्णलेश्या शतक
के समान है। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो।
शेष सब कथन पूर्ववत् पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त -विया. स. ४०,७/स.पं., उ.१-११
करना चाहिए। ३७. भवसिद्धियसन्निपंचेंदियमहाजुम्मसएसु उववायाइ बत्तीस- ३७. भवसिद्धिक संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्म शतक में उत्पातादि दाराणं परूवणं
बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप. भवसिद्धिय-कडजुम्म-कडजुम्म-सन्नि-पंचेंदिया णं भंते ! प्र. भंते ! भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय कओहिंतो उववज्जति?
जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! जहा पढमं सन्निसयं तहा नेयव्यं उ. गौतम ! भवसिद्धिक आलापक के साथ प्रथम संज्ञीशतक के भवसिद्धियाभिलावेणं, णवरं
अनुसार यह शतक जानना चाहिए। विशेषप. भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता पुब्बोववन्ना?
प्र. भंते ! क्या सर्व प्राण यावत् सर्व सत्व यहाँ पहले उत्पन्न
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
शेष कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले
संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! कृष्णलेश्यी औधिकशतक के अनुसार इसी अभिलाप
से यह शतक कहना चाहिए। नीललेश्यी भवसिद्धिकशतक भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
उ. गोयमा ! णो इणढे समढे।
सेसं तं चेव। -विया. स. ४०, ८/स.प., उ.१-११ प. कण्हलेस्स-भवसिद्धिय-कडजुम्म-कडजुम्म-सन्नि-पंचेंदिया
णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं एएणं अभिलावेणं जहा
ओहियकण्हलेस्ससयं। -विया. स. ४०, ९/स.पं., उ. १-११ एवं नीललेस्स भवसिद्धिएहि वि सयं।
-विया. स.४0,90/स.पं., उ.१-११ एवं जहा ओहियाणि सन्नि-पंचेंदियाणं सत्तसयाणि भणियाणि एवं भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायव्याणि,
णवरं-सत्तसु वि सएसु प. भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता पुव्बोववन्ना? उ. गोयमा ! णो इणद्वे समढे। सेसंतं चेव।
-विया. स. ४०,११-१४/स.पं., उ.१-११ ३८. अभवसिद्धिय सन्निपंचेंदिय महाजुम्मसएसु उववायाइ
बत्तीसदाराणं परूवणंप. अभवसिद्धिय-कडजुम्म-कडजुम्म-सन्नि-पंचेंदिया णं भंते !
कओहिंतो उववज्जति?
जिस प्रकार संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के सात औधिकशतक कहे हैं, उसी प्रकार भवसिद्धिक के भी सातों शतक कहने चाहिए। विशेष-सातों शतकों में (यह प्रश्न करना चाहिए) प्र. भंते ! सर्व प्राण यावत् सर्व सत्व यहाँ पूर्व में उत्पन्न हुए हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष कथन पूर्ववत् है।
३८. अभवसिद्धिक संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्म शतक में उत्पातादि
बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले संज्ञी
पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?