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प. पढमचरिमसमय कडजुम्मकडजुम्म एगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उययजति ?
उ. गोयमा ! जहा चरिमउद्देसओ तहेव निरवसेसं । - विया. स. ३५/१/ए, उ. ८, सु. १ प. पढमअचरिम समयकडजुम्मकडजुम्म एगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उववजति ?
उ. गोयमा ! जहा बीओ उद्देसओ तहेव निरवसेसं । -विया. स. ३५, १ / ए, उ. ९, सु. १ प. चरिमचरिमसमय- कडजुम्मकडजुम्म - एगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववर्ज्जति ?
उ. गोयमा ! जहा चउत्यो उद्देसओ तहेव ।
-विया. स. ३५, १/ए, उ. १०, सु. १ प. चरिम अचरिमसमय- कडजुम्मकडजुम्म एगिदिया भंते! कओहिंतो उववज्जति ?
णं
उ. गोयमा ! जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं ।
एवं एए एक्कारस उद्देसगा ।
पढमो तइयो पंचमओ व सरिसगमगा ।
सेसा अट्ठ सरिसगमगा,
णवरं - चउत्थे अट्ठमे दसमे य देवा न उववज्जंति, तेउलेसा नत्थि । - विया. स. ३५, १/ए, उ. ११, सु. १
२५. लेस्सं पडुच्च महाजुम्म एगिदिएसु उववायाइ बत्तीसदाराणं पखवर्ण
प. कण्हलेस्स- कडजुम्मकडजुम्म - एगिंदिया णं भन्ते ! कओहिंतो उववज्जति ?
उ. गोयमा ! उववाओ तहेव एवं जहा ओहिय उद्देसए,
नवरं
नातं
प. ते णं भते ! जीवा कण्हलेस्सा ?
उ. हंता, गोयमा ! कण्हलेस्सा |
प. ते णं भंते ! " कण्हलेस्स - कडजुम्मकडजुम्म - एगिंदिए" ति कालओ केवचिरं होत ?
उ. गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।
एवं ठिई वि।
से तहेब जाव अनंतखुत्तो ।
एवं सोलस वि जुम्मा भाणियव्वा ।
-विया. स. ३५, २/ए, उ. १, सु. १-६ प. पढमसमय कण्हलेस्स- कडजुम्मकडजुम्म- एगिदिया न भन्ते ! कओहिंतो उववज्जंति ?
उ. गोयमा ! जहा पढमसमयउद्देसओ, नवरं
द्रव्यानुयोग - (३)
प्र. भंते ! प्रथम चरमसमय के कृतयुग्म कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इनका समग्र कथन चरमउद्देशक के अनुसार करना चाहिए।
प्र. भंते ! प्रथम- अचरमसमय के कृतयुग्म कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इनका समग्र कथन दूसरे उद्देशक के अनुसार करना चाहिए।
प्र. भंते ! चरम चरमसमय के कृतयुग्म कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इनका समग्र कथन चौथे उद्देशक के अनुसार करना चाहिए।
प्र. भंते ! चरम - अचरमसमय के कृतयुग्म कृतयुग्म राशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इनका समग्र कथन प्रथमसमयोद्देशक के अनुसार करना चाहिए।
इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हैं।
इनमें से पहले, तीसरे और पांचवें उद्देशक के पाठ एक समान हैं।
शेष आठ उद्देशक एक समान पाठ वाले हैं।
विशेष- चौथे आठवें और दसवें उद्देशक में (चरम समय होने के कारण) देवों का उपपात तथा तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिए।
२५. लेश्याओं की अपेक्षा महायुग्म वाले एकेन्द्रियों में उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! कृष्णलेश्यीकृतयुग्म कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इनका उपपात पूर्वोक्त औधिक उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए।
विशेष- इन बातों में भिन्नता है
प्र. भन्ते ! क्या ये जीव कृष्णलेश्या वाले हैं?
उ. हाँ गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं।
प्र. भन्ते ! वे कृष्णलेश्यी कृतयुग्म कृतयुग्म-राशि वाले एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा (उस रूप में) कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं।
उनकी स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए।
शेष सब कथन अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं पर्यन्त पूर्ववत् कथन करना चाहिए ।
इसी प्रकार क्रमशः सोलह महायुग्मों का कथन पूर्ववत् करना चाहिए।
प्र. भन्ते ! प्रथमसमय कृष्णलेश्यी कृतयुग्म कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! इसका समग्र कथन प्रथमसमयोद्देशक के समान जानना चाहिए। विशेष यह है